उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
किसी की रूपसी देह, अपनी मुट्ठी में पाकर, अफ़ज़ल पर मानो उन्माद चढ़ जाता। वह मुझे ताबड़-तोड़ चूमने लगता था। मुझ पर चुम्बनों की झड़ी लगा देता था।
'झूमुर! मेरी प्यारी झूमुरमणि, कहाँ थीं तुम? इतने दिनों से आई क्यों नहीं? तुम मुझे प्यार करने भी नहीं आईं! तुम मुझे भूल क्यों गई, जी?'
'नहीं, भूली नहीं। मैं तुम्हें कभी पल-भर के लिए भी नहीं भूली। मेरी ज़िन्दगी में तुम्हारी ज़रूरत सबसे ज़्यादा है। तुम्हें मैं भला कैसे भूल सकती हूँ?
उसकी यह बात सुनकर अफ़ज़ल इस क़दर खुश हो गया कि उसने गिन-गिनकर छः तस्वीरें दिखाईं, जो उसने एक ही दिन में ऑकी थीं।
'किसकी तस्वीरें हैं, जी?'
'क्यों? नहीं पहचाना।'
'ना-' मेरे होठों पर शरारती हँसी झलक उठी।
अफ़ज़ल ने मेरे सामने, छोटा-सा आईना रख दिया।
'अब कहो, तुम अपने को नहीं पहचान पाई।'
मैंने हँसकर अफ़ज़ल के काले जंगल में अपना चेहरा छिपा लिया।
अर्से बाद, दोनों के युगल शरीर, मिलन के मिथुन-उत्सव में मगन हो गए। अफ़ज़ल आवेग से इस क़दर काँप रहा था कि बहुत जल्दी ही उसका वीर्यपात हो गया। चलो, अच्छा है! जितनी जल्दी काम निपट जाए, उतना ही बेहतर है! मैं अपने को व्यवस्थित करके, झटपट ऊपर की तरफ रवाना हो जाऊँगी।
'अरे अभी ही...? इतनी जल्दी कहाँ जा रही हो?'
'जाना पड़ेगा, जी।'
'नहीं, अभी मत जाओ-'
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