उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
'क्यों? हँस क्यों रही हो? अगर तुम अपने पति से ही तृप्त हो जाती हो, अगर तुम उसे ही प्यार करती हो, तो भला मैं कौन होता हूँ! क्यों हूँ तुम्हारे पास?' अफ़ज़ल का चेहरा एकदम से बुझ आया।
'वह तुम नहीं समझोगे-' मैंने उसकी नाक पर उभरी तिल को चूमते हुए कहा।
उसकी नाक-भौं सिकुड़ी रही! मैं उसे कैसे समझाऊँ कि मैं अपनी ईमानदारी सच्चाई के क्रोध में. अपने सतीत्व के क्रोध में धधक रही हैं।
मैंने उसके सूखे होंठों को अपने नम चुम्बनों से भिंगोते हुए कहा, 'अच्छा, अब चलती हूँ, कल आऊँगी।'
'कल, कब?'
'पता नहीं! किसी भी वक़्त! कल दिन-भर तुम बाहर मत निकलना' मैं
उस दृश्य से देखते-ही-देखते हवा हो गई।
उसी रात मैंने हारुन से कहा, 'मेरे पेट में असहनीय दर्द है।'
'यह तुम्हारे पेट में बीच-बीच में क्या गड़बड़ होती है। जल्दी ही, किसी डॉक्टर के पास जाना होगा। तुम्हें ऐसा दर्द, अक़्सर रहने लगा है।'
अगले दिन भी मेरे पेट में दर्द बना रहा। उसके अगले दिन पेट-दर्द गायब!
लेकिन सिर, दर्द से फटने लगा। हारुन के सामने ही, मैंने एक ही साथ, पाँच-पाँच पैरासिटीमॉल निगल लिया।
'लगता है, तुम पर माइग्रेन का हमला हुआ है।'
'हाँ, मुझे भी यही लगता है...' मैंने भी गिरी-गिरी आवाज़ में जवाब दिया।
अगले दिन माइग्रेन का दर्द तो कम हो गया, मगर मैं बासी खाना खाने की वज़ह से भयंकर आँव की शिकार हो गई।
अगले दिन मुझे हरारत-सी महसूस हुई।
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