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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


पारुल ख़ामोश हो गई। उन लोगों के यहाँ फोन नहीं था। उसने किसी सहेली के घर से मुझे फोन किया था। उस घर से ज़्यादा देर तक बातें करना, उसके लिए सम्भव नहीं था। पारुल जैसे ही चुप हो गई, मैंने ज़ोर से फोन पटक दिया। फोन रखकर, मैं बेसिन के सामने आ खड़ी हुई और काफ़ी देर तक अपने चेहरे पर छींटे मारती रही। चेहरे पर जितना प्रलेप, जितना पसीना, जितना पानी लिपटा था-सब झर जाए!

मुझे मालूम है, मैंने जो-जो कहा, 'पारुल आज ही नूपुर को बता देगी। खैर, जो भी व्यक्ति, चाहे जो भी कहे, इसके बावजूद, मैं नहीं चाहती कि मेरा कोई रिश्तेदार, संगी-साथी मेरी ख़ोज-खबर ले। मैं यह भी नहीं चाहती कि कोई इस घर में आए या कोई मुझे ख़त लिखे या फोन करे। मैं इस बात का मौका नहीं देना चाहती कि फोन के रिसीवर के जरिए किसी का वीर्य या मुझसे मिलने आने वाले की देह या मुझे भेजे गए ख़त के जरिए, मेरे गुप्तांग में प्रवेश कर जाए। बस्स! सीधी-सच्ची बात! अब इसके लिए भले कोई गुस्से से आगभभूखा हो उठे, दुःख से रो पड़े, बेटी को चाँटे मार-मारकर चाहे खून बहा दे-मेरा कुछ आता-जाता नहीं।

हसन को ढाका मेडिकल से निकालकर, पी. जी. अस्पताल में भर्ती कराया गया। सीने की हड्डी, फुप्फुस में जा घुसी है। उसका एक और ऑपरेशन ज़रूरी हो गया! सेवती ने खुद ही उसे पी. जी. भेजने का इन्तज़ाम कर डाला। वहाँ सर्जरी के बड़े प्रोफेसर से ऑपरेशन कराया जाना था। सास-ससुर, यहाँ तक कि हारुन भी दोनों बेला सेवती की खोज-खबर लेने लगे हैं। उसे खाने पर दावत देते हैं, उसके लिए अच्छी-सी साड़ी खरीदी गई है। वगैरह-वगैरह! सेवती की इतनी खातिर-तवज्जो देखकर, मैं मन-ही-मन पुलक उठी।

सासजी खुद नीचे गईं।

'तुम मेरी सगी बेटी जैसी हो' सासजी ने उससे कहा और उससे यह अनुरोध भी किया कि वह ऑपरेशन के दिन, पूरा समय भी पी. जी. में ही बिताए।

सेवती ने वादा किया कि वह अपनी क्षमता के अन्दर ही नहीं, क्षमता के बाहर भी, जो कुछ हो सकेगा, करेगी।

सासजी जिस वक़्त ख़ुशी से गद्गद हो रही थीं सेवती ने उनसे अनुरोध किया कि वह मुझे उसके पास भेज दें। वह कुछ नए असबाब-पत्तर खरीदकर लाई है, मैं उनकी सजावट में उसकी मदद कर दूँ।

सासजी ने हँसते-हँसते मुझे ख़बर दी, 'जाओ, बहूरानी, तुम्हारी सहेली, तुम्हें बुला रही है।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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