लोगों की राय

उपन्यास >> शोध

शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

362 पाठक हैं

तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


रात को दफ्तर से लौटकर, हारुन ने खाना खाया और जब वह सोने आया, मैंने बुझी-बुझी आवाज़ में कहा, 'कुछ दिनों के लिए मैं वारी जाना चाहती हूँ।'

'क्यों? वारी में क्या काम है?'

'कोई काम नहीं है, बस, यूँ ही...?'

हारुन उठकर बैठ गया।

उसने कर्कश आवाज़ में कहा, 'जब कोई काम नहीं है, तो ख़ामख़ाह क्यों जाना है? तुम्हें अक्ल कब आएगी? हसन अस्पताल में है। इस वक्त घर में कौन सुख-चैन से है? इस वक्त तुम फुर्ती करने के लिए, वारी जाना चाहती हो? हमारी इन परेशानी के दिनों में तुम गुलछर्रे उड़ाने को छटपटा रही हो? तुम सिर्फ अपना मौज-मज़ा देखती हो। इस घर-गहस्थी को तम अपना नहीं सकीं. हैरत है।'

मैं अँधेरे में उठकर, खिड़की के सामने आ खड़ी हुई। मेरे आँसू, सिसकियों की आवाज़, हारुन नहीं सुन सका।

कुछ देर लेटे-लेटे करवटें बदलने के बाद, उसने दबी-दबी आवाज़ में डाँट पिलाई, 'क्या बात है? अब भूत की तरह वहाँ क्यों खड़ी हो?'

बिस्तर पर आते ही, वह मेरे कपड़े-लत्ते समेत जिस्म पर चढ़ बैठा और मेरा पेटीकोट हटाकर, उसने जल्दी-जल्दी सम्भोग निपटाया।

सम्भोग निपटाकार, उसने हाँफते हुए कहा, 'मुझे एक बच्चा चाहिए ही चाहिए! गोल-मटोल सुन्दर-सा बच्चा!'

मैंने बुझी-बुझी आवाज़ में जवाब दिया, 'तुम्हें बच्चा चाहिए, इसीलिए हर रात तुम्हें मेरी ज़रूरत पड़ती है, इसीलिए तुम मुझे जाने नहीं देते।'

हारुन ने दाँत पीसते हुए कहा, 'वारी जाने का बहाना बनाकर, तुम अपने एक सौ एक जवान-जहान दोस्तों के साथ मनमानी करती फिरोगी। यह मैं नहीं होने दूंगा।'

मैं करवट बदलकर, मुर्दे-सी पड़ी रही।

अफ़ज़ल के साथ सेक्स-सम्पर्क कायम होने की जो ग्लानि मेरे मन में छाई हुई थी, जो अपराध-बोध मुझे बार-बार कुरेद रहा था, मैंने महसूस किया। वह बादलों की तरह दूर...बहुत दूर खिसकता जा रहा था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book