उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
|
7 पाठकों को प्रिय 362 पाठक हैं |
तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
'क्या देख रही हैं?' अफ़ज़ल ने पूछा।
'उस औरत को...'
‘अफ़ज़ल ने मेरी आँखों में झाँककर सवाल किया, 'उस तस्वीर वाली औरत को न? उसका नाम, सुरंजना है! सुरंजना को मैंने बार-बार मना किया था, वहाँ मत जाना! फिर भी सुरंजना नहीं मानी। वहाँ चली ही गई। वहाँ जाकर, वह किसी और मर्द से बोलने-बतियाने लगी।
'उसके बाद?'
'उसके बाद, उस मर्द ने उसके सारे कपड़े उतार डाले!'
'उसके बाद?
'उसके बाद, उसने उसे चूम लिया, इस तरह।' इतना कहकर, अफ़ज़ल ने मेरे ठुड्डी थामकर, मुझे चूम लिया।
'उसके बाद?'
'उसके बाद, सुरंजना को लेकर वह शख़्स काफ़ी दूर भाग खड़ा हुआ।'
'कितनी दूर?'
'उतनी दूर, जहाँ तक मेरी कभी, किसी दिन पहुँच नहीं होगी।'
'वह फ़ासला कितनी दूर का है?'
'सात समुन्दर, तेरह नदी पार...'
जब मैं सवाल कर रही थी और अफ़ज़ल जवाब देता जा रहा था, मानो वह इस दुनिया में खड़े होकर बातें नहीं कर रहा था। हम एक-दूसरे की तरफ़ अर्थहीन शब्द फेंक रहे थे, असल में जैसे हम गुलाब के फूल उछाले जा रहे हों। या फिर समुन्दर के घुटनों-घुटनों पानी में खड़े, लहरों के जिस्म से अँजुरी-अँजुरी भर पानी उठाकर, एक-दूसरे की तरफ फेंकने का खेल, खेल रहे हों। इस खेल में न किसी की हार है, न जीत! यह खेल अद्भुत मज़ा दे रहा है। पाँखों का स्पर्श मेरी ठुड्डी पर! ठुड्डी से गर्दन और छाती पर!
|