उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
सिर पर पानी उड़ेलकर, उन्होंने बालों में तौलिया लपेटा और आईने के अपनी सूरत निहारते हुए, उन्होंने कहा, 'तुम्हारे फूफा मुझे प्यार नहीं करेंगे तो और किसे करेंगे? हमारे कोई बाल-बच्चा नहीं है। कितने ही लोगों ने उन्हें सलाह दी कि वे दूसरा विवाह कर डालें, लेकिन तुम्हारे फूफा ने ऐसा नहीं किया। समझीं?'
'जी, समझ गई।'
'क्या समझीं?'
'मेरी समझ में आ गया कि फूफाजी आपको प्यार करते हैं। उन्होंने दूसरी शादी नहीं की! उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया।
मेरी बात अभी पूरी नहीं थी कि फूफी हुँकार उठीं, 'तुम बहुत ज़्यादा बोलती हो, झूमुर! बड़े-बुजुर्गों से चटर-चटर बकबकाती रहती हो।'
ज़रा रुककर, दम लेने के बाद, कुमुद फूफी ने दुबारा कहा, 'असल में, तुमने कुछ नहीं समझा! तुम्हारी समझ में यह बिल्कुल नहीं आया कि मर्द का प्यार पाने का मतलब, देह-सुख पाना नहीं होता। मर्द के सेक्स की भूख मिटाने के लिए, प्यार की ज़रूरत नहीं पड़ती। ये मरद, किसी भी औरत को बस, भोगना चाहते हैं! मज़ा लेने से बाज़ नहीं आते।'
'किसी भी औरत के साथ?'
'हाँ, किसी भी औरत के साथ। फर्ज़ करो, हारुन, रसूनी के साथ सोता होता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह रसूनी को प्यार करता है।'
मैंने लाख कोशिश की कि हारुन के उस रसीले संगम के दृश्य की कल्पना कर सकूँ। मगर मैं असफल रही।
फूफी ने कहा, 'हारुन सोएगा, देख लेना, क्योंकि रसूनी की देह में और ही तरह का मज़ा है। तुम्हारी देह उसे एक तरह का मज़ा देगी, रसूनी की देह और तरह का मज़ा देगी। हारुन को दोनों तरह का मज़ा चाहिए। और हाँ, सुनो, यह मर्द की जात, सिर्फ दो-तीन तरह का मज़ा पाकर तृप्त हो जाती है, ऐसा हरगिज़ मत सोचना, उसे तो सौ-दो सौ किस्म मजा लेने का मौका मिले, तो भी वह गऊग्रास की तरह निगल लेगा।'
यह कहते-कहते कुमुद फूफी की आँखें विस्फारित हो उठीं। अपने बयान पर वे खुद ही सिहर उठीं।
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