उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
काश, इस वक्त कहीं से सोहेली फूफी प्रकट हों और मेरा उद्धार करें। दरवाज़े पर कोई आहट नहीं हुई, लेकिन कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा है-यह कहकर, मैं दरवाज़ा खोलने को आगे बढ़ी। कुमुद फूफी एकदम से मुझ पर टूट पड़ीं।
'क्या कर रही हो? क्या कर रही हो? मेरी बात अभी खत्म नहीं हुई।'
'फूफी, मुझे पानी की प्यास लगी है।'
'तो बाथरूम में जाकर, पानी पी लो न!'
फूफी के हुक्म पर मुझे बाथरूम में ही जाना पड़ा। चाहे मैं पानी पीऊँ या न पीऊँ, मैं बाथरूम में जा घुसी। ऐन उसी वक़्त दरवाज़े पर दस्तक हुई। शुक्र है, मेरी जान बची।
सासजी दरवाजे पर दस्तक देकर, चीख रही थीं, 'क्या हुआ, बहू, अन्दर क्या कर रही हो? दरवाज़ा क्यों बन्द किया है?'
कुमुद फूफी ने ही दरवाज़ा खोलकर, जवाब दिया, 'मैं ज़रा देर बहुरिया से वात करूँ, तुम नहीं चाहतीं, भाभी? झूमुर पढ़ी-लिखी है, तो क्या हुआ? गस्तविक ज़िन्दगी के बारे में उसे कोई तजुर्बा नहीं है! कुछ भी पूछो, उसके पास कोई जवाब नहीं होता। इस लड़की की तक़दीर में, काफी दुःख बदा है, भाभी, कहे देती हूँ।'
सासजी कुमुद फूफी को खींच ले गईं।
रसूनी को भेजकर सासजी ने अलाउद्दीन की दुकान से मिठाई मँगवाई थी। फूफी लोग अभी मिठाई खाएँगी। उसके बाद रात को खाना खाकर अपने-अपने घर लौटेंगी।
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