उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
प्रकाशचन्द्र ने अपने पत्र के नीचे "पुनश्च'' में लिखा था, "बम्बई से पत्र आया है कि वहां से आने वाली स्त्री के मार्ग में बाधा खड़ी हो गयी है। उस बाधा को दूर करने का उपाय कर रहा हूं।"
श्रीमती ने पत्र पढ़ा और एक क्षण तक ही उसमें रुचि अनुभव की परन्तु अगले ही क्षण उसने पत्र पर विचार करने के लिये मेज पर रखा और फिर वह भूल गयी कि उसमें उसके पति ने कुछ करने को लिखा है। उसके मन में पढ़ते-पढ़ते यह भी विचार आया कि उस स्त्री के दिल्ली आने मे किस प्रकार की बाधा हो सकती है, परन्तु जब पत्र मेज पर रखा और भूली तो इस विषय में जानने की अभिरुचि भी समाप्त हो गयी।
श्रीमती जब भी किसी गम्भीर विषय पर विचार करने लगती थी तो उसे नींद आ जाती थी और फिर नींद के उपरान्त वह उस विषय को मूल जाती थी।
पत्र को आये तीन दिन हो चुके थे और उसे स्मरण नहीं रहा था कि उसने अपने पिताजी के घर जाकर पता करना है कि उनके वकील ज्योति स्वरूप की पटीशन के विषय में क्या विचार है?
रात रामी ने सूरदास के बिना सुन्दरदास के आने के विषय में बताया था और वहू इस विषय में और अधिक जानने की इच्छा रखती थी परन्तु, रात सोने के उपरान्त वह भूल गयी। प्रात: वह उठी और शौचादि से निवृत्त हो वह रामी को बुला अपने कमरे में ही अल्पाहार मंगवा कर खाने लगी। इस समय रामी, जो मालकिन के खाने के समय एक ओर खड़ी थी, जिससे किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो तुरन्त लाकर दे सके।
उचित समय समझ रामी ने कह दिया, "बहू! सास रानी कहती थीं कि अल्पाहार के उपरान्त आप उनसे मिल ले।"
श्रीमती अपनें विचारों में खोयी हुई थी और वह समझ नहीं रही थी कि रामी क्या कह रही है? इतना ज्ञान उसे हुआ था कि रामी ने कुछ कहा है। एकाएक उसने सिर उठा कर पूछ लिया, "क्या कहा है तुमने?"
''मालकिन! माताजी ने कहा है कि अल्पाहार के उपरान्त उनसे मिल लें।''
"क्यों?"
''यह तो उन्होंने बताया नहीं।"
"तो जाओ, पूछ आओ क्या काम है और कह देना आज
मैं शिथिलता अनुभव कर रही हूँ। कुछ आवश्यक कार्य हो तो यहीं आ जायें।"
रामी ने देखा कि खाने वाले पदार्थों में सब अभी हैं और बहु को किसी वस्तु की विशेष आवश्यकता नहीं; इस कारण वह उसी समय कमरे से बाहर निकल गयी और चन्द्रावती के पास जा पहुंची। चन्द्रावती कमला और शीलवती के साथ भोजन कर रही थी।
रामी सामने आयी तो चन्द्रावती ने उसकी ओर प्रश्नभरी दृष्टि में देख लिया। रामी ने कहा, "मांजी! बहू कहती हैं कि आज वह नित्य से अधिक शिथिलता अनुभव कर रही हैं। यदि कुछ आवश्यक कार्य हो तो आप ही वहां आने का कष्ट कर दें।"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :