उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
: 10 :
जब से प्रकाश लोक सभा का सदस्य बना था, वह दिल्ली में ही रहा था। इस काल में तुक बार ही वह बदायूं आया था।
कासगंज में ज्योतिस्वरूप से पटीशन न करने का मोल-तोल हो रहा था। ज्योतिस्वरूप ने इसका दाम एक लाख रुपया मांगा था। यह पटीशन करने की अवधि बीत जाते पर मिलना था और श्रीमती के पिता इसमें जामन बनने वाले थे। श्रीमती के पिता जब बदायूँ सेठ कौड़ियामल्ल से बातकर लौटे तो सेठजी उनके पीछे-पीछे अपनी गाड़ी में कासगंज जा पहुंचे। ज्यों ही धन्नाराम की मोटर गाड़ी उनके मकान के बाहर पहुंची कि कौड़ियामल्ल की गाड़ी भी उनके पीछे जा खड़ी हुई।
धन्नाराम ने गाडी से समधि सेठजी को उतरते देखा तो विस्मित रह गये। कौड़ियामल्ल ने प्रश्न पूछे जाने से पूर्व ही अपने आने की सफाई दे दी। उसने कहा, "मैं इस मामले में तुरन्त निश्चय करना ठीक समझ प्रकाश से स्वयं ही बात करने चला आया हूं।"
''पर प्रकाश तो दिल्ली में है।''
"उसने अपनी पत्नी को लिखा है कि वह यहां आने वाला है। नहीं आया तो आता ही होगा।"
धन्नाराम मुस्कराते हुए बोला, "अच्छा, आइये! उसकी प्रतीक्षा करेंगे।"
परन्तु प्रकाशचन्द्र बैठक घर में बैठा अपने छोटे साले से ताश खेल रहा था। उसे देखते ही कौड़ियामल्ल ने धन्नाराम को कह दिया, "वह आपकी अनुपस्थिति में आ गया प्रतीत होता है।''
प्रकाश ने भी अपने पिता को देखा तो उठकर हाथ जोड़ प्रणाम कर बोला, "मैं तो स्वयं ही वहाँ आने वाला था।''
''सत्य? फिर भी कुछ हानि नहीं हुई। चलो, मैं तुमको अपनी गाड़ी में लिए चलूंगा।"
''गाड़ी तो मेरे पास अपनी है। ड्राईवर पैट्रोल डलवाने गया है।"
"वह भी चल सकेगी।''
ज्योतिस्वरूप की बातचीत हो गयी। धन्नाराम जामन हो गया। एक लाख में से दस सहस्र अग्रिम उसी समय दे दिया गया। शेष पटीशन करने की अवधि व्यतीत हो जाने पर देने का वचन हो गया। पिता पुत्र कासगंज से एक ही गाड़ी में गये। प्रकाशचन्द्र की गाड़ी खाली पीछे-पीछे चली आयी।
घर पर पहुंचे तो रात के भोजन का समय हो गया था। वहां पहुंचते ही पिता-पुत्र हाथ धो कुल्ला कर खाने की मेज पर आ बैठे। वहां सेठानी, कमला और विमला पहले ही बैठी थीं।
प्रकाश ने विमला को देखा तो विस्मय प्रकट कर पूछ लिया, ''ओह! तो तुम यहाँ हो?"
विमला मुस्करा दी और मौन रही।
सेठजी तथा सेठानी ने विमला के जन्म का रहस्य कमला को नहीं बताया था। साथ ही शीलवती को कह दिया गया था कि उसने भी यह रहस्य कमला को नहीं बताना। उनका कहना था कि जब तक उसके प्रकाश के साथ भविष्य में सम्बन्धों का निश्चय न हो जाये तब तक इस रहस्य को गुप्त ही रखा जाये।
भोजन के समय भी सामान्य विषयों पर ही बात होती रही। प्रकाशचन्द्र का कहना था आज के प्रबन्ध से मैं अपनी लोक सभा की गद्दी पाँच वर्ष के लिए सुरक्षित समझता हूं।''
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :