उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
द्वितीय परिच्छेद
: 1 :
प्रकाशचन्द्र का निर्वाचन कार्य खूब तेजी से चल रहा था। एक मिस्टर रमेशचन्द्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी से कार्य की व्यवस्था के लिये बदायूं में आये हुए थे। वह यह देख तो प्रसन्न था कि प्रकाशचन्द्र का प्रचार कार्य और मतदाताओं से सम्पर्क कार्य अति सुव्यवस्थापूर्वक चल रहा हैं। प्रकाशचन्द्र के लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र में आठ विधान सभा के क्षेत्र थे। इन आठों क्षेत्रों में लोक सभा के प्रत्याशी के लिये कार्य और राज्य विधान सभा के प्रत्याशियों का सब कार्य बदायूं से किया जा रहा था। सब प्रबन्ध को मुंशी कर्तानारायण देख रहा था। सब प्रकार के व्यय वह स्वयं कर रहा था और सिन्हा मुंशी जी को बताते रहते थे कि किस किस क्षेत्र में क्या कार्य करना चाहिये। एक सहस्त्र के लगभग कार्यकर्ता काम कर रहे थे। सरकारी मतदाता सूची से वर्णात्मक सूची, मतदाता केन्द्र के अनुसार सूबियां तथा मोहल्लों और गांवों के अनुसार सूचियां तो तुरन्त बनवा ली गयी थीं और तीन लाख मतदाताओं को दस्ती सूचना तथा! उनकी मतदातासख्या एवं मत केन्द्रों का नम्बर एवं पता लिख कर भेज दिया गया था। बहुत सीमा तक प्रकाशचन्द्र स्वयं मतदाताओं के पास पहुँचा था। इसके अतिरिक्त लगभग ढाई सौ मत केन्द्रों में दो-दो सभायें हो चुकी थीं। इस सब प्रबन्ध से मिस्टर सिन्हा सन्तुष्ट थे।
इस पर भी मिस्टर सिन्हा प्रचार की विधि पर प्रसन्न नहीं था। वह देख रहा था कि रामराज्य की धूम थी। मुसलमानी क्षेत्रों में इसका विरोध हो रहा था और वह समझ रहा था कि मुसलमानी मत कांग्रेस के विरुद्ध जायेंगे। उसके पास समाचार आ रहे थे कि निर्वाचन सभाओं में राम कथा और कीर्तन से मुसलमान अप्रसन्न हो रहे हैं।
मिस्टर सिन्हा ने इस स्थिति की सूचना राज्य के तथा केन्द्र के नेताओं के पास भी भेजी थी। इस पर मिस्टर शर्मा बदायूं आये थे। उन्होंने प्रकाश चन्द्र को समझाया कि वह सूरदास को अपनी सभाओं में न ले जाया करे। इससे आपके क्षेत्र के मुसलमान भड़क उठे हैं।
प्रकाशचन्द्र ने कह दिया, ''सूरदास किसी भी समुदाय के विपरीत नहीं कहता। वह बताता रहता है कि गांधी जी के रामराज्य में सम्प्रदायों से भेद भाव नहीं किया जायेगा। मैंने एक पर्याप्त संख्या में मुसलमान कार्यकर्त्ता भी रखे हुए हैं।''
''यह ठीक है, परन्तु राम का नाम लेना भी पसन्द नहीं किया जाता। देखो प्रकाशजी! आपके क्षेत्र में पांच अन्य प्रत्याशी हैं। इनमें से दो तो स्वतन्त्र हैं। एक कम्युनिस्ट है। वह मुसलमान है। एक पी. एस. पी0 और एक जनसंघ के हैं। वे तीनों मुसलमानों को इस कथा-कीर्तन के लिये आपके विरुद्ध भड़का रहे है। सुना है कि आर्यसमाजी भी आपके विपरीत हो जनसंघ की सहायता कर रहे हैं। वे आपकी कथा मे बजरंगवली की जयघोष को पसन्द नहीं करते।
''परिणाम यह हो रहा है कि हिन्दु वोट बट रहे हैं और मुसलमान पी0 एस0 पी0 की तथा कम्पुनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी की ओर झुक रहे हैं।''
''मेरे पास तो समाचार इसके विपरीत आ रहे हैं। कम्युनिस्ट प्रत्याशी की जमानत जप्त होगी। जनसंघ का विरोध यहां प्रबल था, परन्तु मेरे राम प्रचार ने उनके डंक को निकाल दिया है। उनका प्रत्याशी कहता फिरता है कि वह मुसलमानों पर हिन्दू राज्य नहीं थोप रहा। इसका प्रभाव हिन्दु मतदाताओं पर विलक्षण हो रहा है। वे जनसंघ के पक्ष में केवल इस कारण है कि जनसंघ एक हिन्दू दल है और जब उनके कार्यकर्त्ताओं को राम के विपरीत कहतें देखते है तो उस दल के सहायक ही निरुत्साह हो रहे हैं।
''इसके अतिरिक्त मुसलमानों को सन्तुष्ट करने के लिये भी प्रबन्ध हों रहा है।
परन्तु राजनीति में राम का नाम तो हमारे नेता जवाहरलालजी को पसन्द नहीं।''
''क्यों? उनको क्या आपत्ति है इसमें? उनको तो यह समझ लेना चाहिये कि यह तो एक निर्वाचनों का ढंग मात्र है।''
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :