उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
|
0 |
गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
: 5 :
कमरे में दरी, चादर कालीन और तकियों का प्रबंध हुआ तो सूरदास आराम करने लगा। वह दिन के समय चारपाई अथवा पलंग पर लेटता नहीं था। तकिया का आश्रय ले विश्राम कर लिया करता था। आज कई दिन के उपरांत उसे यह अवसर मिला था और वह एक तकिये का आश्रय ले तनिक आराम से बैठा ही था कि कमरे के बाहर से प्रियवदना की आवाज़ आयी, "भैया! दर्जी आया है।" "क्यों?"
''बूआ ने कहा है कि आपके लिये वस्त्र बनवाने हैं।"
''और कपड़ा?"
''वह तो अपनी दुकान पर है। बूआ पसन्द कर लेंगी।"
''आ जाओ।" सूरदास ने मुस्कराते हुए कहा।
दर्जी अभी नाप ले ही रहा था कि दुकान की एक कर्मचारी स्त्री संगीत वाद्य स्टोर के एक कर्मचारी को साथ ले आ गयी। साथ में चार-पांच तानपुरे थे और खड़तालें थी।
"लो राम भैया!" प्रियवदना ने हंसते हुए कह दिया, "तुम्हारे चलाने को चक्की आ गयी है।"
दर्जी काम समाप्त कर गया तो तानपुरे देखे जाने लगे थे। सूरदास ने भी उनको पकड़ स्वर कर और बजा कर देखा। एक उसे बहुत मधुर प्रतीत हुआ। वह उसने एक ओर रख कह दिया, "यह ठीक रहेगा। कितने दाम का है यह?''
लाने वाले कर्मचारी ने कहा, "तीन सौ बीस रुपये का।"
''इस पर सूरदास ने प्रियवदना को कह दिया, "बहन! देखो, माताजी से पूछ आओ कि कितने दाम तक का वह ले देंगी?"
''अब खड़तालें देखो भैया!" प्रियवदना ने हंसते हुए कहा, "इतने मात्र से माताजी का दिवाला नहीं निकलेगा।"
''तब ठीक है।" सूरदास ने करतालों में भी एक हल्की सी और छोटी सी पसन्द कर ली।
अगली सायंकाल धनवती बम्बई आ पहुँची। तारकेश्वरी ने उसे समझा दिया था कि किस समय की गाड़ी में चढ़ना है। यदि वह गाडी छूट जाये तो उसे चाहिये कि तार दे दे, अन्यथा वह मानव सागर बम्बई में खो गयी तो डूबे बिना नही, रहेगी।"
परन्तु धनवती ने मुस्करा कर कह दिया, "बहन! खोते और डूबते वे हैं जो अपने को नहीं जानते। अपने को जानने वाले ता डूबे हुओं को भी तार देते हैं।"
एक दिन तारकेश्वरी प्रात: नौ बजे के अल्पाहार के उपरान्त कहने लगी, "राम भैया! आज डाक्टर से समय निश्चय किया है। उसने कहा है कि आंखों का निरीक्षण कर ही बताया जा सकता है कि कुछ किया जा सकता है अथवा नहीं।''
''मां देख लो। वैसे अब दो दो माताओं और कई बहनों में रहता हुआ अपने को चक्षुविहीन नहीं पाता। जहां अन्य लोगों की दो आँखें होती हैं, मेरी तो दस-बारह हैं।"
''राम! मेरा मन कह रहा है कि इस निरीक्षण से लाभ ही होगा।"
''हरि इच्छा।"
डाक्टर ने कई प्रकार से। निरीक्षण कर कह दिया, "चक्षु का चित्रपट स्थानाच्युत है। इस कारण कुछ दिखायी नहीं देता। यह स्थान पर बैठाया तो जा सकता है, परन्तु कब तक वहां पर टिका रह सकेगा, कोई नहीं कह सकता। साथ ही स्थान पर आ जाने पर भी उसमें देखने की सामर्थ्य है अथवा नहीं, कहा नहीं जा सकता।
|
- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :