उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
: 8 :
प्रकाशचन्द्र के मन में भारी उथल-पुथल मचने लगी थी। दिल्ली में संसद सदस्यों में यह विख्यात् होता जाता था कि वह कुछ अधिक पढ़ा-लिखा नहीं है। उसने हिन्दू मज़हबी भावनाओं को उभार कर निर्वाचन जीता है। इस कारण संसद सदस्यों मैं प्राय: उसे एक निम्न कोटि का प्राणी मानते थे। कुछ ऐसे भी थे जो उसे एक चतुर नीतिमान मानते थे। ऐसे लोगों की संख्या कम थी। इस पर भी दोनों प्रकार के सदस्यों से उसका सम्पर्क आ रहा था और वह उनकी बातों से ऊब रहा था। सबसे मज़ेदार बात यह थी कि कांग्रेस दल का सचेतक उससे मिलता रहता था और उससे मीठी-मीठी बातें करता रहता था, परन्तु वह ही उसकी निन्दा अन्य सदस्यों में करता रहता था।
उन सदस्यों में जो उसे एक चतुर नीतिश मानते थे, पंजाब का एक सदस्य शिवकुमार चतुर्भुज था। प्रकाशचन्द्र "लौबी'' में खड़ा विचार कर रहा था। संसद में काम फीका चल रहा था और किसी भी विषय पर मतदान की सम्भावना प्रतीत नहीं होती थी। सचेतक ने उसे उपस्थित रहने का भी आग्रह नहीं किया था। अत: वह कहीं घूमने के लिये जाना चाहता था कि मिस्टर चतुर्भुज उसके पास चला आया और सामान्य अभिवादन के उपरान्त बोला, "क्या विचार कर रहे हैं प्रकाश बाबू?''
''चतुर्भुज साहब! यहां तो कुछ फीका-फीका लग रहा है। इस कारण विचार कर रहा हूँ कि कही चल दूं, परन्तु अभी यह विचार नहीं कर सका कि किधर चलूं?''
"तो आइये। हमारे यहां चलिये। हम आपके मनोरंजन का सामान कर देंगे।"
''क्या करेंगे?'' उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना वह चतुर्भुज के साथ बाहर को चल दिया। चतुर्भूज ने कह दिया, "कुछ आपके विषय में हो रही मज़ेदार बातें बताऊंगा।"
''तो मैं क्या इतना विख्यात आदमी हो गया हूँ कि मेरी चर्चा होने लगी है?"
"विख्यात तो नहीं कह सकता। हो, अधिकांश सदस्यों मैं आप कुख्यात अवश्य हो रहे हैं।"
"ये दोनों एक ही बात नहीं हैं क्या? बदनाम भी तो नाम कर होते हैं।"
''हां; यही तो मैं आपसे कहने जा रहा हूँ।" दोनों प्रकाशचन्द्र की गाडी के पास जा पहुंचे। दोनों सवार हुए तो चतुर्भुज ने कह दिया, "फ़िरोजशाह रोड पर मेरे निवास पर चलिये।"
मोटर चल पड़ी तो चतुर्भुज ने अपने मन की बात कह दी। उसने कहा, "आप तो पहली बार ही निर्वाचित होकर आये हैं। इस कारण आपके विषय में एक सामान्य सी रुचि उत्पन्न होनी स्वाभाविक थी, परन्तु प्रधान मन्त्री और कुछ भन्य मन्त्रियों ने आपकी हंसी उड़ानी आरम्भ कर रखी है। परिणाम यह हो रहा है कि उन मन्त्रियों के साथी वही राग अलापते हैं जो उनके चेता मन्त्री गण कह्ते हैं। इस प्रकार आपके विषय मैं रुचिकर चर्चा चलने लगी है।"
''तो मन्त्रीगणों के यहां साथी भी हैं जो बिना विचार किये अथवा बिना किसी प्रमाण पाये मन्त्रीगणों की हां में हां मिलाते रहते हैं?''
''तो यहू आप नहीं जानते?''
"क्या नहीं जानता?''
''यही कि संसद का कार्य कैसे चलता है?''
''कैसे चलता है?''
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :