उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
चन्द्रावती के माथे पर त्योरी चढ़ गयी, परन्तु तुरन्त ही अपने को नियन्त्रण में कर बोली, "भोजन के उपरान्त आती हूं।"
रामी गयी तो कमला ने पूछ लिया, "मांजी! भाभी दुर्बलता क्यों अनुभव करती हैं? उनको क्या रोग है?''
चन्द्रावती ने मुस्कराते हुए कहा, "कमला! मैं डाक्टर तो हूं नहीं। उसके रोग और रोग के कारण को तो जानती नहीं। जान सकती भी नहीं और जानने में रुचि भी नहीं रखती। वह खाती तो हमसे अधिक है। मिठाई पूरी तो हम सबसे अधिक लेती है। पहनती भी सबसे बढ़िया है। औषधियां नहीं लेती। उसके कमरे में कभी डाक्टर, हकीम जाता नहीं देरवा।
''इस पर भी जब वह कहती है कि वह दुर्बल है और कमरे से बाहर नहीं निकल सकती तो मैं विचार करती हूं कि मैं इसमें क्या क्र सकती हूँ?''
"वह कुछ पढ़ती-लिखती भी तो नहीं। फिर यह कमरे में बैठी करती क्या रहती है?"
''यह मेरे जानने का विषय नहीं। यह उसके अपने तथा उसके पति के जानने की बात है।"
"तो हमारा उससे कोई सम्बध नहीं?''
''तुम बात नहीं समझीं। मैं अपने विषय में जानती हूँ कि मेरे मन मैं उसके प्रति किसी प्रकार का राग अथवा द्वेष नहीं। वह हमारे घर में है तो है। जब वह आयी थी तो उससे किसी प्रकार की प्रसन्नता नहीं हुई थी। अब इतने वर्ष उसके घर में रहने पर उससे लगाव भी उत्पन्न नहीं हुआ और जब वह जाना चाहेगी तो उससे किसी प्रकार का शोक भी नहीं होगा।"
भोजनोपरान्त चन्द्रावती श्रीमती के कमरे को जाने लगी तो कमला ने पूछा, "माँ मैं भी चल?"
"नही। मैं शीलबती को साथ लिये जा रही हूं। तुमको बीच में नहीं आना चाहिये।''
''तो किसी प्रकार का झगड़ा होने की भी सम्भावना है?"
"मेरी ओर से तो नहीं परन्तु मेरे कहे की क्या प्रतिक्रिया वहां होने वाली है, कैसे बता सकती हूं?''
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :