उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
अब प्रकाश ने सूरदास की बात का संशोधन करते हुए कहा, "राम! इस प्रकार नहीं। मैं तो हाड, चाम का प्रकाश ही रहूँगा। केवल सोने का प्रवाह इधर को करने की बात कह रहा हूं। रही बात हमारे घर में स्वर्ण पहले से ही होने की। वह तो जितना अधिक हो उतना ही ठीक नहीं क्या?''
''ठीक है बेटा।" सेठजी ने कहा, "हम वैश्य हैं। धन पैदा करना हमारा काम है और फिर इसे सतकार्य में लगाना हमारा कर्तव्य है।"
"तो पिताजी! आज्ञा करिये, मैं इस सत्कार्य को आरम्भ कर दे।"
"कैसे करोगे?"
''पहले लखनऊ जाना पड़ेगा। वहां एक शर्मा हैं। उनको अपने पक्ष में करना होगा। मैंने यहां की कांग्रेस के मन्त्री को भेज दिया है। वह मेरे लिये शर्माजी के मन को तैयार करेगा।"
''मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। कब जाओगे?''
''मन्त्री कह गया है कि मनुष्य को प्रत्येक कार्य में सफलता अपने गुणों से ही मिलती है। यह गुणों का ही प्रभाव होता णै कि प्रभावी जन सहायता के लिये आ जाते हैं। इस कारण मुझे अपने गुणों को बटोर कर वहां साथ ले चलना चाहिये।"
"तो प्रकाश। राम को साथ ले जाओ। यह स्बसे बडा गुण है, जो हमारे घर में है।"
''राम को तो ले ही जाऊँगा, परन्तु पिताजी। आपकी कृपा से मेरा एक अन्य गुण भी तो है। उसे भी प्रयोग करने की स्वीकृति दीजिये।" "तनिक स्पष्ट बात कहो। मुझमें तो एक ही गुण है कि मैने जीवनकाल में करोड़ों पैदा किये हैं और अब उदार हाथ से व्यय करता हूँ।"
"बस यही चाहता हूँ कि वह उदार हाथ आप मुझे दे दीजिये।"
"ठीक है। सफलता प्राप्त कर आओ। धन इसी के लिये पैदा किया है।"
यह पूर्ण वार्त्तालाप कमला के सामने ही हो रहा था और वह इससे प्रभावित तो हुई थी, परन्तु उसके मन पर प्रभाव प्रकाश के मन पर प्रभाव से विपरीत हुआ था। वह विचार कर रही थी कि क्या भैया वैसा ही कुछ करने जा रहा है जैसा धन पैदाकर पिताजी करते है? उसको समझ आ रहा था कि यह एक विराट विनाश की दिशा होगी। वह मन में विचार कर रही थी कि पिताजी को इसे कोरा चैक देने से मना कर दे, परन्तु वह अभी बालिका मात्र थी और साथ ही वह हिन्दु प्रथा के अनुसार अपने को पिता के घर का हांग नहीं मानती थी इस कारण उसने अपने मन की बात सूरदास से कहलाने के लिये कह दिया, "राम जी! आप बतायें कि धन का सर्वोत्तम प्रयोग क्या है?"
"धन तो कामना पूर्ति के लिये होता है, परन्तु वह कामनायें धर्मानुकूल होनी चाहियें।''
''और भैया का लोक सभा की सदस्यता की कामना धर्मानुसार है क्या?'' कमला का अगला प्रश्न था।
''बहन कमला! यह मैं नहीं जानता। यह तो भैया स्वयं ही बता सकेंगे।"
इस पर सेठजी ने बात बना दी। उन्होंने कहा, "धर्म तो कर्म के करने के पीछे ही पता चलेगा। एक ही कर्म धर्म का रूप भी हो सकता है और अधर्म का भी। यह उद्देश्य से ही पता चलेगा, जिससे कर्म किया जा रहा है।
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :