उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
कमला अब अठारह वर्ष की हो गयी थी। वह अंग्रेज़ी का ज्ञान भी अपने भाई से अधिक रखती थी। वैसे संस्क़ुत शास्त्र और इतिहास भी पढ़ा करती थी।
कमला के विवाह की चर्चा तो एक चर्चा चल रही थी, परन्तु किसी न किसी कारण से कोई सम्बन्ध बन नहीं रहा था। इससे लड़की के मन में कई प्रकार के विचार उत्पन्न हो रहे थे और सूरदास का कथा-कीर्तन उसके विचारों को एक दिशा दे रहा था। अब इस दिशा का प्रदर्शन होने लगा था।
मंसद में सदस्य बनने की लालसा प्रकाश बम्बई से लेकर आया था। यह लालसा केन्द्रीय सरकार के एक प्रमुख मन्त्री को 'ताज' होटल में 'रिसैप्शन' देने के समय उत्पन्न हुई थी। प्रकाठाचन्द्र होस्ट था। सब व्यय उसकी फ़र्म ने किया था। यह पांच हजार के लगभग हो गया था, परन्तु उसने देखा था कि प्रमुखता कुछ बम्बई के संसद सदस्यों की मिली है।
अत: उसके मन में भी संसद का सदस्य बनने की लालसा हुई। उसने मुख्य अतिथि से संकेत कर दिया। मुख्य अतिथि केन्द्रीय सरकार का मन्त्री और केन्द्रीय कांग्रेस कार्यकारिणी का सदस्य था। उसने प्रकाशचन्द्र को मार्ग दिखा दिया, "अपने राज्य के निर्वाचन बोर्ड की सिफारिश लाओ तो बात बन सकती है।"
अत: प्रकाश उस मार्ग का अनुसरण करने के विषय में योजना बनाने लगा। प्रकाशचन्द्र ने घर आ पिताजी से अपनी इच्छा प्रकट की तो सेठजी ने पूछ लिया, "वहां जाकर क्या करोगे?"
''देश के बड़े-बड़े लोगों से मिलने का अवसर मिलेगा।"
''वे कौन हैं जिनसे तुम तब मिल सकोगे और अब नहीं मिल सकते?"
''पण्डित जवाहरलाल नेहरू, पण्डित गोविन्द वल्लभ पंत, मुरार जी भाई देसाई और देश भर के पांच सौ चोटी के नेता। पिता जी, वहां जाऊंगा तो कुछ अक्ल सीख सकूँगा। रांगा से सोना बन जाऊँगा।"
सेठजी ने मुस्कराते हुए सूरदास से पूछ लिया, "राम। क्या सत्य ही प्रकाश स्वरगमय हो जायेगा?"
कथा के उपरान्त बात उसी के कमरे में हो रही थी। सेठजी, सेठानीजी, कमला और कमला की अध्यापिका और उसका पति भी सूरदास के साथ-साथ कथा-स्थल सें आये थे और उसके कमरे में बैठ गये थे।
कथा के उपरान्त सूरदास को पीने को दूध मित्रा करता था और वह सुन्दरदास दे गया था। सूरदास दूध पी रहा था, तब सेठजी ने प्रकाश पर व्यंग कस सूरदास से प्रश्न कर दिया।
सूरदास ने दूध पीते-पीते रुककर कह दिया, "हां, पिताजी। भैया स्वर्णमय हो सकते हैं, परन्तु यह स्वयं तो सोना तब ही होंगे जब किसी रसायनी की कुठाली में तपेंगे।"
प्रकाश इस उपमा का अर्थ समझने के लिये सूरदास का मुख देखता रह गया। सूरदास ने अपने वचन की व्याख्या कर दी। उसने कहा, "पिताजी! यदि रेता में बूरा-चीनी, खिण्ड जाये तो रेत चीनीमय हो जाती है, परन्तु रेत चीनी नहीं हो सकती। रेत को चीनी बनाने के लिये तो कुछ अन्य करना पड़ता है।"
''क्या करना पड़ता है?''
"इसका काया-कल्प करना पड़ता है। मनुष्य का काया-कल्प रेत की तुलना में सहज है। भैया यह चाहेंगे तो इनका काया-कल्प हो, जायेगा और यह स्वरर्ग भी हो जायेंगे।"
सब सूरदास का भाव समझने का यत्न कर रहे थे कि सूरदास ने एक बात और कह दी, "पिताजी! क्या आपको स्वर्ण की इतनी अधिक आवश्यकता है कि आप प्रकाश भैया को जड़ स्वर्ण में बदल देंगे?"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :