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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

"और देखो राम! हम धन पैदा करते हैं और यह काम हमने तुमको सौंप रखा है कि उस धन का सदुपयोग बताओ। तुम कहते हो तो कथा-कीर्तन और हरि भवन करवाता हूँ; तुम कहते हो तो अन्य क्षेत्र खोल देता हूँ। तुमने कहा हरिद्वार में एक संस्कृत पाठशाला खोल दी जाये। आंखों वालों को अन्धकार से बाहर लाने के लिये तुम ऐसा चाहते थे। हमने बीस सहस्र रुपये वार्षिक के व्यय से पाठशाला खोल दी है।

''इसी प्रकार प्रकाश अब यश अर्जन करने जा रहा है और तुम ही बताओगे कि इस यश का क्या उपयोग किया जाये?"

इस प्रकार नयनाभिराम प्रकाशचन्द्र के साथ लखनऊ जाने के लिये तैयार कर दिया गया।

लखनऊ जाने से पूर्व कमला अपने मन में उठ रहे उद्गार प्रकट करने सूरदास के कमरे में आ गई। उसने अभी बात आरम्भ ही की थी और कहा ही था, "राम जी!" कि सुन्दरदास वहां आ गया। अत: वह मन की बात नहीं कह सकी। उसने बात बदल दी। उसने पूछ लिया, "आप लखनऊ जा रहे हैं?''

''हां कमला बहन।"

"कब तक लौटने का विचार है?''

"यह तो मैं नहीं बता सकता। पिताजी का कहना है कि खाली हाथ नहीं लौटना।''

उसने बात कथा-कीर्तन पर चला दी। वह सुन्दरदास के जाने की प्रतीक्षा करती रही और जब वह नहीं गया तो एक घन्टा भर व्यर्थ की बात कर वह वहा से चली आयी।

अगले दिन लखनऊ जाने की तैयारी थी। सुन्दरदास भी सूरदास के साथ जाने वाला था। वह उसकी आंखें था। अत: उस रात वह अपनी पत्नी के पास अपने घर चला गया। उसका विचार था कि वह प्रात: सूरदास के जागने से पूर्व वहां पहुंच जायगा, परन्तु जब वह आया सूरदास जागा हुआ था और स्नान-ध्यान कर चुका था। सुन्दरदास ने खांसकर अपने आने की सूचना कर दी।

"कौन?" सूरदास ने पूछा।

"भैया। मैं सुन्दर हूँ।"

"रात मेरा द्वार खुला था क्या?"

"हां, भैया। बहन कमला कह रही थीं कि अभी रात को गर्मी होती है; इस कारण द्वार बन्द न किया जाय। मैंने भी यही अनुभव किया था कि बन्द कमरे में हवा आनी चाहिये।"

"तुम रात कहां सोते हो ?"

"मैं रात आपको सुलाकर अपने घर चला गया था। कुन्दन की मां यही चाहती थी।"

सूरदास मुस्कराया, यद्यपि वह देख नहीं सका कि सुन्दरदास का मुख यह कहते कहते लज्जा से लाल हो गया है; इस पर भी उसके शब्दों में कुछ झिझक तथा कुछ कम्पन उसने भी अनुभव की थी।

एकाएक सूरदास के मुख से निकल गया, "अच्छा ही कर रहे हो।"

अब सुन्दरदास ने कुछ अश्वस्त हो कह दिया, "हां भैया। आज कई दिन के लिये लखनऊ जा रहा हूँ और कुन्दन की मां ने बुला भेजा था।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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