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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''सदस्य तो प्राय: देहातों से चुनकर आते हैं। सरल चित्त देहातियों को ये जो कुछ झूठ अथवा सत्य बता कर मत प्राप्त करते हैं, उसका यहां संसद के साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं होता। उदाहरण के रूप में मैं अपने क्षेत्र में यह कहता रहा है कि हमने उद्योगों मै बहुत उन्नति की है और अन्न के विषय में हमारी प्रथम योजना अति सफल रही है।

''वास्तविकता यह है कि मैं तो पहले निर्वाचन में भी सफल होकर आया था और उसमें कहता रहा था कि हमने देश को अन्य के विषय में सफल बनाना है, अत: मत कांग्रेस को दो। इस कारण इस बार मुझे यह कहना पड़ा कि हम अन्न के विषय मै बहुत सीमा तक सफल हो गये हैं और अब हम अपना ध्यान उद्योगों की ओर लगाना चाहते हैं। अत: मत कांग्रेस को दो।

''वे बेचारे समझ गये कि मैंने सत्य ही देश का भारी कल्याण किया है और इस बार भी मैं लगभग एक लाख मत अधिक प्राप्त कर सफल हो गया। परन्तु मैं जानता हूँ कि देश के कल्याण से अधिक कल्याण हमारा, हमारे मित्रों और सम्बन्धियों का हुआ है।

"यह कल्याण हम अपने को तथा अपने मित्रों इत्यादि को न करा सकते, यदि हम यहां संसद में किसी एक मन्त्री से सम्बन्ध न बनाते। मैंने अपना सम्बन्ध सुरक्षा मन्त्री से बना रखा है। सबसे बड़ा बजट तो देश के सुरक्षा विभाग का ही होता है और वहां पर ही सबसे अधिक हाथ रंगने के अवसर होते हैं।

''हमें मतदाताओं के चौधरियों को प्रसन्न करता होता है जिससे आगामी निर्वाचनों में हमारी यह संसद की कुर्सी निश्चित बनी रहे। उसके लिये हमें धन चाहिये। अत: मेरे लिये सबसे बड़ा सुभीता यह है कि मैंने सबसे धनी मन्त्री से सम्बन्ध जोड़ लिया है। वह समाजवादी विचारों का व्यक्ति है और मैं भी इसमें विश्वास न रखते हुए भी समाजवादी बन गया हूं। क्या करूं, मैंने अपने निर्वाचनों में पच्चीस हजार व्यय किया है और उसको एक वर्ष के भीतर पूरा करना है।''

इस समय वे फ़िरोजशाह रोड पर पहुँच गये। ड्रायंग रूम में बैठते हुए चतुर्भुज ने आवाज़ दी, "सन्तु! ओ सन्तु!!''

एक नौकर आया। चतुर्भुज ने कह दिया, ''देखो, बीबीजी को कह दो कि चाय बनवा दें।"

''अभी चाय का समय नहीं है।'' प्रकाशचन्द्र ने कहा।

''प्रकाशबाबू। हम समय को घसीटकर आगे ला रहे हैं। यही तो प्रगतिशीलता के अर्थ हैं।''

सन्तु चला गया।

चतुर्भुज ने अपना कहना जारी रखा। उसने कहा, "प्रधानमन्त्री ने अपने पद को सुरक्षित करने के लिये मन्त्रियों को अगने अंगूठे के नीचे रखा हुआ है। इसके लिये लाभ वाले पद उन मन्त्रियों को मिलते हैं, जिसके साथी सदस्य अधिक हैं। मन्त्रियों के अधिक साथी उसके जो होते हैं जो सदस्यों को आय वाले काम दिलाते रहते हैं और हम उस मन्त्री के साथ रहना चाहते हैं जो हमारे मतदाताओं को सुख सुविधा पहुंचाते रहते हैं।''

''में समझ गया हूं।''

"और आपने यहां आकर किसी मिनिस्टर से सम्बन्ध हीं बनाया। परिणाम यह है कि सब आपकी हंसी उड़ाते हैं और फर उनके साथी भी आपको मूर्ख मानते हैं।

''देखिये, यही बात कल सुरक्षा मन्त्री के दरबार में हुई। मन्त्री महोदय मुझसे पूछने लगे, ''यह बदायूं के लाला कौन हैं?''

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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