उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
|
7 पाठकों को प्रिय 362 पाठक हैं |
तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
कभी पैर की नाखूनों की तरफ़ कभी सोहेली फफी का चेहरा, कभी सपारी के पेड़ों की फुनगियाँ निहारते हुए, मुझे मातृत्व माहात्म्य के बारे में लम्बा भाषण सुनना ही पड़ा। मझे यह भी सनना पडा कि वे खद पाँच-पाँच बार माँ बनीं और हर बार माँ बनते वक़्त उन्हें क्या-क्या तजुर्बे हुए, इस बारे में भी उन्होंने लम्बा वक्तव्य सुना डाला। निःसंतान होने का दर्द, उन्होंने कुमुद को देखकर ही समझा है। कुमुद फूफी ने अब तक दो-दो मृत संतानों को जन्म दिया। डॉक्टर-वैद्य को भी कम नहीं दिखाया गया। इसके बावजूद उनमें गर्भवती होने का कोई लक्षण नहीं है। अब तो खैर, वह उम्र भी नहीं रही कि वह कोख में संतान धारण करें। कुमुद की ज़िन्दगी का अब कोई मूल्य नहीं रहा, सोहेली फूफी ने लम्बी उसाँस भर-भरकर ही सारी दास्तान सुना डाली। लेकिन मैंने जितने दिनों कुमुद फूफी को देखा है मुझे कभी भी यह नहीं लगा कि उनकी ज़िन्दगी का कोई अर्थ या मोल नहीं है।
मैं सोहेली की हथकड़ी-बेड़ियों से निकलने के लिए अन्दर-ही-अन्दर व्यग्र हो उठी, आख़िर कुमुद फूफी ने ही मेरा उद्धार किया।
‘झूमुर, ज़रा इधर तो आना!' यह कहते हुए, वे मुझे खींचकर, हारुन के सोने के कमरे में दाखिल हुईं।
बिस्तर पर पाँव उठाकर, इत्मीनान से बैठे हुए उन्होंने हुक्म दिया, 'दरवाज़ा वन्द कर दो ज़रा! इस वक़्त घर में भीड़ लग गई है और मुझे इतनी भीड़ बिल्कुल पसन्द नहीं है।'
कुमुद फूफी के हुक्म मुताबिक, मैंने दरवाज़ा अन्दर से बन्द कर लिया।
'इतनी देर से सोहेली क्या बकबक कर रही थी?'
'अभी तक बच्चा क्यों नहीं हुआ, यही पूछ रही थीं।'
'बच्चा क्या अक्कास से गिरेगा? तुम ही कहो, बच्चे क्या कभी आसमान से टपकते हैं?'
कुमुद फूफी गम्भीर चेहरा लिए, अपने सवाल का जवाब माँग रही थीं। जवाब देने के बजाय, मैं हँस पड़ी।
'हँसो मत, झूमुर! तुम तो बात-बात में हँस देती हो। तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं ख़ामख़ाह की बात नहीं करती।'
अपनी हँसी दबाकर, मैं कुमुद फूफी के आमने-सामने बैठ गई।
|