उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
अफ़ज़ल ने हँसते-हँसते ही कहा, 'मेरा सपना है, तस्वीरें बनाना और घूमते-फिरते रहना! मैं शहंशाहों की तरह जीना चाहता हूँ। कभी-न-कभी तो भिखारी की तरह, टुप् से मर जाना निश्चित है। जब मरण तय है, तो गाड़ी-घोड़े, घर-मकान लेने से क्या फ़ायदा! खामख़ाह इन सबके पीछे वक्त बाद करना है।'
'ब्याह करना भी क्या वक्त बर्बाद करना है?'
'हाँ! बेशक! बेशक! वैसे मुझसे विवाह कौन करेगा? कोई नहीं!' अफ़ज़ल ने होंठ बिचकाकर कहा!
नम होंठ! अभिमान से थरथराते हुए होंठ! कपड़ों पर भी उसके रंग झलकते हुए! नाक पर भी वही रंग लिपटे हुए! मेरा मन हुआ, उसकी नाक पर झलकता हुआ रंग, अपने आँचल से पोंछ दूँ। मेरे मन में चाह जागी कि उसकी आँखों पर लहराते बालों को हौले से हटा दूँ।
लेकिन इस चाह के बावजूद, मैंने अपनी चाह पर लगाम खींचते हुए कहाँ, 'मुझे भी घूमने-फिरने का बेहद शौक़ है।'
'देश के बाहर कहाँ-कहाँ गई हैं?'
'कहीं भी नहीं'तो क्या सिर्फ देश में ही धुलाई की है?'
बाहर भी कहीं जाना नहीं हुआ।'-मैं हँस पड़ी। अफ़ज़ल चकित निगाहों से मुझे देखता रहा। अगले ही पल उसने ज़ोर का ठहाका लगाया। उसको हँसते देखकर, मैं संकोच से गड़ गई। अफ़ज़ल ने हँसते-हँसते ही कहा, 'चलो, ठीक है, आपके पति को फुर्सत नहीं देख लें, तो समझ लें, आधी दुनिया देख ली।'
'कब चलेंगी, बताइए?' अफ़ज़ल अपनी कुर्सी और क़रीब खींच लाया। मेरी जुबानी आज या कल ही चल देने का फैसला सुनने के लिए, वह इस क़दर उत्कण्ठित हो आया कि कुर्सी समेत, मेरे और करीब चला आया।
"मुझे साथ ले जाकर क्या करेंगे? मैं आपकी होती कौन हूँ?'
'मुझसे बातचीत कर रही हैं? मैं ही भला आपका कौन होता हूँ?'
मैं हँस पड़ी, 'आप मेरी सहेली के देवर हैं।'
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