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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


अफ़ज़ल ने गहन-गम्भीर आवाज़ में बात शुरू की, 'किसी का इन्तज़ार करते हुए, आप क्या अपनी जुबान बन्द रखती हैं? कोई बात-बात करें न!'

मैं हँस पड़ी! अफ़जल भी हँस दिया।

इसके बाद वह खुद ही बताता रहा कि कब वह भारत से ढाका चला आया! यहाँ आए हुए, उसे ज़्यादा दिन नहीं हुए। बस, उसका आने का मन हुआ, वह चला आया। वहाँ से उसका मन उचट गया था। वह क्या चाहता है? ना, वह कुछ भी नहीं चाहता। उसने कोई योजना बनाकर, अपनी ज़िन्दगी कभी नहीं गुजारी। उसकी जिन्दगी बहती धार है। बहते-बहते, वह कभी किसी किनारे पर, कुछ देर के लिए ठहर जाता है। फिर उस किनारे से बहते-उतराते दूसरे किनारे की ओर चल देता है। यही तो भला है। घाट के मुर्दो की तरह जिन्दगी-भर किसी एक किनारे पर सड़ने-गलने का और किसी को भले शौक हो, उसे ऐसा कोई चाव नहीं है। अनवर उसे किसी नौकरी में लगाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन नौकरी उसे बिल्कुल पसन्द नहीं है, क्योंकि दूसरों के मातहत चाकरी करना उसके लिए सम्भव नहीं है।

'आपका कोई सपना नहीं है?' मैंने पूछा।

'कैसा सपना?'

‘रुपए कमाकर घर-वर बनवाना, गाड़ी ख़रीदना, बीवी-बच्चों के साथ गृहस्थी बसाना-यही सब?'

अफ़ज़ल ने जोर का ठहाका लगाया। यह हँसी भी हारुन की हँसी जैसी नहीं थी। बिल्कुल अलग तरह की थी। इस हँसी में प्राण था! यह हँसी सुनकर, धूप भी हँस दे, हवाएँ अपने विशाल केश लहराती हुई, बेहद सुख से उड़ती फिरें!

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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