उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
|
7 पाठकों को प्रिय 362 पाठक हैं |
तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
थोड़ा-बहुत सच और बाकी सब झूठ में ही वक़्त कटता रहा। जब सेवती आती थी, सिर्फ तभी ऐसा लगता था कि चलो, कोई एक इन्सान तो मिला, जिससे दिल की बात की जा सकती है। कोई तो ऐसा शख्स है, जिससे लिपटकर रोया जा सकता है; संग-संग हँसा जा सकता है, बाहर की दुनिया के किस्से सुने जा सकते हैं। कोई तो है, जिससे अपनी इस छोटी-सी दुनिया के बारे में कहा-सुना जा सकता है। आजकल तो मैं यह भी भूलती जा रही हूँ कि मेरा शैशव, बचपन किसी सभ्य-शिक्षित परिवेश में गुज़रा था। मेरे पापा-माँ हमेशा मुझे लिख-पढ़कर, सच्चा इन्सान बनने और अपने पैरों पर खड़े होने की सीख देते रहे। बचपन में उन दोनों से ही यह सीख सुनकर, मैं हँस देती थी। मुझे लगता था, अभी भी इन्सान ही हूँ, जन्तु नहीं और अपने दोनों पैरों पर ही तो खड़ी हूँ। लेकिन अब जाकर, उनकी हिदायतों का मतलब समझ पाई हूँ। सच तो यह है कि स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय-सारे पड़ाव पार कर आने के बाद भी, मैं अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाई। अपना कहने को मेरा कुछ भी नहीं है। अब तो गैर भले, तो मैं भी भली; पराए सखी. तो मैं भी सुखी! दूसरों की तकलीफ़ ही, अब मेरी तकलीफ़ है। हाँ, इसीलिए, जब घर में यह खबर आई कि हारुन को कारोबार में दस लाख रुपयों का नुकसान हुआ है, तो सब उदास हो आए। मुझे भी दुःखी-दुःखी चेहरा बनाए, बैठे रहना पड़ा।
हारुन जब घर लौटा, तो उसके सामने खाना परोसकर, उसकी बग़ल में बैठना पड़ा।
मैंने बेहद शोक-विह्वल लहजे में पूछा, 'बहुत नुकसान हो गया न, जी?'
हारुन का चेहरा उसी तरह भारी बना रहा!
उसकी थाली में और दो टुकड़े गोश्त डालते हुए मैंने पूछा, 'यह अचानक...इतने सारे रुपए कैसे चौपट हो गए, जी?'
"तुम यह सब नहीं समझोगी-' हारुन ने सख्त लहजे में जवाब दिया। हाँ, इसी तरह अबूझ और नासमझ बनी, मेरे दिन गुज़रते रहे।
हारुन जब घर लौटा, दोलन बग़ल के कमरे में बैठी-बैठी महीन आवाज में सुबक रही थी। मैं अचकचा गई। ठीक इसी वक़्त, दोलन रो क्यों रही है? सास जी हाथ में तस्वीह झुलाए, हारुन के सिरहाने आ बैठीं। उसके माथे पर फूंक मारते हुए, उन्होंने रानू से उसके लिए निम्बू का शरबत लाने की हिदायत दी। शरबत लाने को वह मुझसे भी कह सकती थीं, मगर उन्होंने रानू को शरबत लाने का हुक्म दिया। वैसे हारुन जब घर पर न हो, तब सभी घरवालों को शरबत पिलाने की जिम्मेदारी मेरी थी।
हारुन को शरबत पिलाकर, सासजी ने बेहद नरम आवाज़ में बात छेड़ी, 'हारुन के इस नुकसान पर, सबसे ज़्यादा दुःखी है-दोलन! अनीस तो जब से रुपए लेकर गया, तब से उसका कोई अता-पता नहीं है। कोई खोज-खबर भी नहीं दी कि वहाँ क्या चल रहा है? उसकी खबर भी तुझे ही लेनी होगी।'
दोलन, हारुन की इकलौती और सगी बहन है, यह बात हारुन को बखूबी याद थी, मगर उन्होंने दुबारा याद दिलाई।
|