उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
इस घर में मेरे सभी देवर-ननद मुझे भाभी ही कहते हैं, कोई 'झूमुर भाभी' नहीं कहता। अनीस के मुँह से झूमुर भाभी' सम्बोधन सुनकर, मुझे अहसास हुआ कि मेरा एक नाम भी है। अनीस ने सिर्फ मेरा नाम ही याद नहीं दिलाया, बल्कि यह भी अहसास कराया कि मैंने काफ़ी दूर तक लिखाई-पढ़ाई भी की है।
मैंने अनीस का चेहरा पढ़ने की कोशिश की! लम्बा-चौड़ा विशाल मर्द-अनीस! गोरे रंग के गोल-गाल चेहरे पर, काली-चिकनी मूंछे, काफ़ी सूट करती हैं। लेकिन अब गालों पर दाढ़ी भी उगने लगी थी, जो बेहद बेमेल लग रही थी।
उसने अपनी छाती के काले-काले रोमों पर हाथ फेरते हुए कहा, 'आप कोई नौकरी-चाकरी क्यों नहीं करतीं?'
मैंने इसका भी कोई जवाब नहीं दिया।
अनीस ने दुबारा कहा, 'फिर इतना लिखने-पढ़ने का आख़िर क्या फ़ायदा हुआ? घर में बैठे-बैठे खाना पकाने के लिए क्या एम ए, बी ए, पास करने की ज़रूरत पड़ती है भला?'
अनीस के चेहरे पर ईद के चाँद की तरह चिकनी-बाँकी हँसी झलक उठी।
अनीस मुझसे कैसे जवाब की उम्मीद कर रहा था, मुझे नहीं मालूम। जवाब में, मैं कह सकती थी-खाना पकाने के लिए रसूनी की तरह, डिग्री हीन होने से भी चल जाता, मगर हारुन, रसूनी से विवाह करता भला? नहीं, वह उससे हरगिज़ विवाह नहीं करता। चूँकि मैंने विश्वविद्यालय की डिग्री ली है, इसीलिए उसने मुझसे विवाह किया। एम ए, बी ए पास लड़की होने का कम-से-कम यह फ़ायदा तो होता ही है कि उसकी तक़दीर में भला-सा पति जुट जाता है। अनीस के शब्द, मेरे दिमाग के अन्दर आँखमिचौनी का खेल, खेलने लगा। मेरी जुबान से एक शब्द भी नहीं फूटा। अनजाने में ही मेरे मुँह से लम्बी उसाँस निकल पड़ी। अपनी इस लम्बी उसाँस पर मैं ख़ुद ही अचकचा गई।
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