उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
हारुन शायद समझ गया कि उसका आमन्त्रण मुझे क़बूल नहीं है! आखिर वह बुद्धिमान मर्द था!
वह हँस पड़ा, 'अरे, बाप रे! तुमने क्या समझ लिया, मैं सचमुच तुम्हारे साथ कुछ करूँगा? अरे नहीं, जो सब होना है, वह विवाह के बाद ही होगा।' इतना कहकर उसने एक सिगरेट सुलगाई और मेरी तरफ़ देखते हुए, उसके होंठों पर रहस्यमयी मुस्कान खिल उठी।
उस दिन भी उसकी आँखों से आँखें मिलाते हुए मुझे बेतरह शर्म आती रही। जब मैं शर्म के मारे सिमटी-सकुचाई, सिर झुकाए बैठी हुई थी, हारुन मेरे बिल्कुल क़रीब आ बैठा।
उसने मेरी पीठ सहलाते हुए हँसकर कहा, 'मैं तो तुम्हारा इम्तहान ले रहा था।'
उसकी बात सुनकर मेरी भौंहें सिकुड़ आईं। हारुन मेरा इम्तहान ले रहा था, इस बात का कोई सिर-पैर मेरी समझ में नहीं आया।
'इम्तहान ले रहे थे मतलब?'
उस वक़्त हारुन के होंठों पर रहस्यभरी नहीं, तृप्ति की हँसी झलक उठी, 'तुम बेहद शरीफ़ और भली लड़की हो, यही ज़रा जाँच-परख कर रहा था। चलो, अब मैं निश्चिन्त हो गया।
जब वह यह जुमला कह रहा था, उस वक़्त भी उसके होंठों पर तृप्ति की हँसी झलक रही थी।
उस दिन हारुन मुझे लगातार शरीफ़ लड़की, भली लड़की, वगैरह सम्बोधनों से दुलारता रहा, उसकी बातें सुनकर मैं बेतरह परेशान हो उठी। किसी के साथ शारीरिक सम्बन्ध हो, तो वह लड़की बुरी है, अगर न हो, तो भली-यह मानने को मैं कतई राजी नहीं थी। ब्याह से पहले ही शिप्रा और दीपू में सेक्स सम्बन्ध कायम हो चुका था। शिप्रा ने खुद यह बात मुझसे बताई थी। अब उन दोनों में सेक्स सम्बन्ध था, इसलिए क्या वह बुरी हो गई? शिप्रा अगर बुरी थी, तो दीपू भी...! लेकिन मैं, उन दोनों में से किसी को भी बुरा कहने को बिल्कुल राजी नहीं हूँ बल्कि अगर मुझसे दो शरीफ़ लोगों का नाम लेने को कहा जाए, तो सबसे पहले मैं शिप्रा और दीपू का नाम लूँगी।
उस दिन, जब अपने सहकर्मी के खाली घर में हारुन मुझे चूम रहा था और मेरी पीठ सहला रहा था, मेरा अंग-प्रत्यंग चुपके-चुपके पिघलता जा रहा था। उस वक़्त मेरे मन में तीखी चाह जाग उठी कि उसका हाथ मेरी पीठ से कन्धे तक आ पहुँचे, कन्धे से उभारों तक...मेरी देह की पोर-पोर में चहलकदमी करता फिरे। उस दिन अगर मुझे घर लौटने की जल्दी न होती, तो मैं हारुन के प्रस्ताव पर राजी हो जाती। आखिर क्यों न राजी होती? अगर उसके स्पर्श से मेरी जवान देह में ज्वर उठने लगे; अगर वह किसी निर्जन-एकान्त में मेरी पोर-पोर में प्यार अंकित की चाह ज़ाहिर करे: अगर मैं पोर-पोर उसका प्यार ग्रहण करूँ, तो मैं बरी कहाँ से हो गई? मैं तो वही की वही हँ! वही मैं!
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