उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
काग़ज़ पर दवा का नाम लिखते-लिखते उन्होंने कहा, 'तीन महीने बाद, फिर दिलखाने को ले आएँ-'
क्यों? तीन महीने बाद क्यों?' हारुन परेशान हो उठा।
'धबराने जैसी कोई बात नहीं है। मैं रोगी को तीन महीने बाद ही देखती हूँ। उसके बाद हर महीने देखूगी।'
कागज हारुन की तरफ़ बढ़ाते हुए, डॉक्टर ने हँसकर कहा, 'अब से अपनी मिसेज़ को अच्छी-अच्छी चीजें खिलाइएगा।'
'मुझे आपकी बात ठीक-ठीक समझ में नहीं आईं।' हारुन ने कड़वाहट के लहजे में कहा।
डॉक्टर दुवारा हँस पड़ी।
'आप पिता बनने वाले हैं। जाइए, घर में जश्न मनाइए।'
डॉक्टर के चेम्बर से निकलकर मैंने राहत की साँस ली। पेट में बच्चा होने के बजाए अगर किसी गम्भीर रोग की खबर मिली होती, तो ग़ज़ब हो जाता। कोई बुरी ख़बर मिलने की आशंका से मैं बेतरह घबड़ा गई थी! लेकिन डॉक्टर ने खुशखबरी सुनाई। इससे ज़्यादा सुखद और क्या हो सकता है?'
मुझे लेकर, हारुन जव गाड़ी में आ बैठा, मेरे अन्दर खुशी की बयार बह रही थी। लेकिन हारुन ने तो मुझे बाँहों में लेकर, खुशी का इज़हार नहीं किया। बेहद गम्भीर मुद्रा में उसने गाड़ी स्टार्ट की। मुझे बेतरह अभिमान हो आया। वह क्या मुझे चौंकाना चाहता है? हारुन किसी को चौंकाने में वेतरह माहिर था।
उन दिनों हमारा व्याह नहीं हुआ था। मैंने उसे बताया कि आज मेरा जन्मदिन है। मेरी बात सुनकर उसने सिर्फ़ सिर हिला दिया, जुबान से कुछ नहीं कहा, मानो मेरा जन्मदिन कोई ख़ास वात नहीं है, और दिनों की तरह ही विल्कुल आम बात! उस दिन हारुन न मेरी तरफ़ देखकर हँसा, न ही उसने मुबारकवाद दी। वह गम्भीर मुद्रा में गाड़ी चलाता रहा। मैं अभिमान भरा चेहरा लिए, उसकी बग़ल में बैठी रही। अचानक मुझे चौंकाते हुए, वह मुझे ‘सोनार गाँव' होटल में ले गया और वहाँ उसने जन्मदिन का बड़ा-सा केक अंगाया! केक पर मोमवत्ती जल रही थी।
उसने फूलों का विराट गुच्छा मेरे हाथों में थमाते हुए कहा, 'शुभ जन्मदिन!' यह देखकर मेरी आँखें भर आईं! सुख के आँसू!
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