उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
सुवह आनन्द को स्कॉलिस्टिका किंडर गार्डेन में पहुँचाकर, मैं रिक्शा लेकर वेडी रोडवाले स्कूल जा पहुंची। हेडमिस्ट्रेस के कमरे में बैठे-बैठे, मैंने काग़ज़ पर दस्तखत किया दिया और उनसे अपना काम भी समझ लिया। अजीब-सा भला-भला अहसास मेरा मन भरा-भरा रहा। आज पहली बार मुझे अपना आपा बेहद ताक़तवर लगा। आज पहली बार मैंने महसूस किया कि मैं भी इन्सान हूँ एक अलग हस्ती हूँ। मैं सिर्फ हारुन की बीवी या आनन्द की माँ या सासजी की बहूरानी, दोलन, हसन और हवीव की भाभी ही नहीं हूँ। मैं माँ-पापा की बेटी या नूपुर की बहन ही नहीं हूँ, मैं जीनत सुलताना झूमुर हूँ! मैं टीचर हूँ! मैं कोई फेंकी हुई चीज़ नहीं हूँ; मैं कोई चीज़ भी नहीं हूँ; घर की सजावट या गृहस्थी की सज्जा का कोई सामान भी नहीं हूँ, मैं एक अदद इन्सान हूँ और इस समाज को देने के लिए, मेरे पास ढेरों-ढेरों कुछ है। मुझमें शक्ति है; सामर्थ्य है! सिर पर आँचल डाले, दिन-भर पति और उसके नाते-रिश्तेदारों की सेवा में जुटे रहो, तो पति और उनके रिश्तेदारों को तो ज़रूर फ़ायदा होता है, मगर मेरा नुकसान के अलावा और क्या होता है? अब मैं अपने पैरों पर खड़ी होऊँगी, हारुन को भी अहसास होगा कि अब मैं उसकी ढेरों क्रूरताएँ क़बूल नहीं करूँगी। अब मैं ढेरों बातों में उसकी बिल्कुल परवाह नहीं करूँगी क्योंकि अब मैं किसी भी बात के लिए उसके हाथों गिरवी नहीं पड़ी हूँ। अब मैं जब चाहूँ, अपने गुज़ारे भर का इन्तजाम खुद ही कर सकती हूँ। हारुन को मैं प्यार करती हूँ, लेकिन प्यार करने का यह मतलब हरगिज़ नहीं है कि उसके लिए मैं अपनी जान कुर्बान कर दूँगी, अपनी सारी सम्भावनाओं का गला घोंट दूंगी।
मुझे प्यार करते हुए, हारुन ने कोई त्याग नहीं किया। प्यार का मतलब निःस्व या खाली हो जाना कभी भी नहीं है।
आनन्द के जन्म के लिए, मेरे मन में कहीं, कोई अपराध-बोध नहीं है। मैंने तो अपनी बेइज्जती का शोध लिया है! मैं कोई इतनी नगण्य या तुच्छ इन्सान नहीं हूँ कि कोई मेरे गाल पर अकारण ही थप्पड़ जड़ दे और मैं हज़म कर जाऊँगी। कोई मुझे धूल में मिला दे और मैं उसे अपने माथे पर चढ़ाकर, उसकी पूजा करूँगी। हारुन जब आनन्द को बेटू, बच्चू कहकर, उसका लाड़-प्यार करता है, मेरे दिल में सुख का फव्वारा फूट पड़ता है! वह जो हारुन मुझे अविश्वास की आग में जलाता रहा था, और मैं जलती रही, काफ़ी-काफ़ी सालों तक जलती-झुलसती रही, अब मैंने उस आग को, अपने सुख के जल से बुझा दिया है।
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