उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
सेवती भी यहाँ से जा चुकी है। निचली मन्ज़िल में अब दूसरे किराएदार आ बसे हैं। चार बेटियाँ और दो बेटों समेत एक अदद अधेड़ दम्पती! जाने से पहले, सेवती मुझसे मिलने आई थी। उसने बताया कि अफ़ज़ल ने ऑस्ट्रेलिया से ख़त लिखा है। वहाँ उसने किसी मेमसाहव से विवाह कर लिया है और सुखी है। उसे उस देश की नागरिकता भी मिल गई है। सेवती का ढाका मेडिकल कॉलेज से ट्रान्सफर हो गया है। अब वह मैमनसिंह मेडिकल कॉलेज में चली गई है। अनवर कुमिल्ला का एन जी ओ चलाने के लिए, कुमिल्ला चला गया है।
इधर मुझमें जो परिवर्तन आया है, वह भी गौर करने लायक है। मेरे सिर से आँचल, अब सरक गया है। अब, जब भी ज़रूरत पड़ती है, अकेली ही घर से निकल जाती हूँ, घूमने-फिरने भी जाती हूँ, बाज़ार से सामान वगैरह भी ले आती हूँ। अब मैं वारी भी जाती हूँ। नूपुर के घर का चक्कर भी लगा आती हूँ। यहाँ तक कि शिप्रा और दीपू की गृहस्थी में भी दिन गुज़ार आती हूँ। नादिरा, चन्दना, सुभाष, आरजू के घर भी अड्डा जमाने लगी हूँ। चन्दना का विवाह हो गया। नादिरा ने एलान कर दिया है कि वह ब्याह-वाह नहीं करेगी। सुभाष के विवाह की बातचीत चल रही है। वह ट्यूशनें करके, अपनी गृहस्थी चलाता है, अभी तक उसे कोई अच्छी-सी नौकरी नहीं मिली। आरजू अपने अब्बू की ही कम्पनी में काम करने लगी है। उसका एक जहाज खरीदने का इरादा है।
काफ़ी दिनों से इस घर में कोई जश्न नहीं मनाया गया।
मैंने हारुन से कहा, 'अपने घर में कोई जश्न-वश्न मनाओ न, जी, मैं अपने संगी-साथियों को अपने घर बुलाना चाहती हूँ।'
'अपने दोस्तों को?' हारुन ने पूछा।
'हाँ, अपने दोस्तों को!'
'कौन हैं तुम्हारे दोस्त?'
हारुन की आँखों में आँखें डालकर, मैंने निर्लिप्त आवाज़ में पलटकर सवाल किया, 'तुम मेरे दोस्तों को पहचानते हो-सुभाष, आरजू, चन्दना, नादिरा! इन लोगों को तुम बेशक पहचानते हो। क्यों पहचानते हो या नहीं?
'अच्छा-अच्छा! वे लोग....!!'
हारुन ने सिर हिला दिया यानी वह उन लोगों को पहचानता है।
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