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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


शाम को दफ्तर से लौटकर, आनन्द को गोद में उठाए-उठाए, हारुन समचे घर में घूमता-फिरता था। आनन्द के लिए हारुन का अति उत्साह देखकर, घरवाले भी आनन्द के लिए अतिशय उमंग और ममता दिखाने को विवश थे।

हर रोज सासजी या दोलन या हबीब या हसन ख़बर देती रहती थीं-आज आनन्द हँसा था! आज उसने हाथ हिलाया!

आनन्द को नहलाने-धुलाने, दूध पिलाने, सुलाने से जितना मैं नहीं जुड़ी थी, हारुन और दूसरे घरवाले उससे कहीं ज्यादा जुड़े हुए थे।

जश्न के दो दिनों बाद, रानू ने ही मुझे खबर दी कि हसन का सउदी अरब जाना पक्का हो गया है।

ख़ुशी से गद्गद होकर, उसने मुझसे लिपटते हुए कहा, 'भाभी, मेरी तो तक़दीर खुल गई।

मैंने हँसकर, रानू का हाथ छूते हुए कहा, 'तक़दीर तो पहले जैसी ही है। इसमें कोई बदलाव मझे तो नज़र नहीं आ रहा है।

मारे ख़ुशी के रानू की आँखों में आँसू आ गए।

उसने खुद ही अपने आँसू पोंछते-पोंछते कहा, 'वह पहले जा रहा है। बाद में मुझे भी ले जाने का इन्तजाम करेगा।'

'भई, हमें छोड़कर चली जाओगी, मन उदास नहीं होगा?'

'उदास क्यों होगा, भाभी? अपनी निजी गृहस्थी में ज्यादा सुख है, भाभी! पराई गृहस्थी में मुमकिन है, खाना-कपड़ा अच्छा मिले, लेकिन सुख नहीं होता। अपनी निजी गृहस्थी में मामूली दाल-भात खाकर भी, सुख है।'

रानू की उम्र में मैं समूचे मैदान में बेभाव खेलती-घूमती रही। रानू की उम्र बारह या तेरह वर्ष! अब पक्की गृहस्थिन की तरह बातें कर रही थी। मैंने महसूस किया कि ब्याह शायद ऐसी चीज है, जो लड़कियों की उम्र दन्न् से बढ़ा देता है।

'एइ, रानू,' मैंने दबी आवाज़ में पूछा, हसन तुम्हें प्यार करता है?'

रानू ने होंठ बिचकाकर जवाब दिया, प्यार की ज़रूरत भी क्या है? बस, अपनी एक गृहस्थी होगी, मन लगाकर गृहस्थी चलाऊँगी। घर सजाऊँगी, खाना-वाना पकाऊँगी, शौहर के लौटने का इन्तज़ार करूँगी, फिर उसे खाना खिलाऊँगी। साथ-साथ सोऊँगी, बच्चे-कच्चे होंगे, उनका लालन-पालन करूँगी!'

'वाह! यही सब करने से चल जाएगा? प्यार की जरूरत नहीं?'

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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