उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
साड़ी में वह कैसी लग रही है, यह निरखते-परखते हुए उसने कहा, 'अपनी वह आखिरी तस्वीर, यहीं छोड़ गया है। एक औरत की पिछाड़ी...सामने लम्बी-सी सीढ़ी। वह तस्वीर वह नहीं ले गया। मैंने उससे जानना भी चाहा कि यह औरत कौन है? उसने जवाब दिया- 'यह कोई नहीं है! एक सपना है!' मैंने फिर पूछा, 'सच?' उसने फिर जवाब दिया-'सच!' अनवर ने आज सेवती की तारीफ़ करते हुए कहा कि आज वह बेहद खूबसूरत लग रही है। क्या सचमुच वह खूबसूरत लग रही है? सेवती ने मेरी राय पूछी। आज उसने हरे रंग की जामदानी साड़ी पहनी थी, माथे पर उससे मिलती-जुलती बिन्दी!
'तुम वाकई जानमारू लग रही हो। असल में सूरत-शक्ल से तो तुम सुन्दर हो ही! तुम हर वक़्त खूबसूरत लगती हो।'
आईने के सामने से हटकर, सेवती सीधे मेरे बदन पर आ पड़ी।
उसने मेरा गाल दबाते हुए कहा, 'तुम्हारे जैसी हसीना मैं कहाँ हूँ? हारुन भाई क्या झूठमूठ ही तुम्हारे पीछे दीवाने हैं?'
सेवती को अपने दोनों हाथों से परे धकेलते हुए, मैंने हँसकर कहा, 'सुनो, अब मैं एक बेटे की माँ हूँ। हारुन का पागलपन देखने की मुझे बिल्कुल फुर्सत नहीं है।'
सेवती के सामने ही मैंने बच्चे को दूध पिलाने के लिए, अपनी गोद में ले लिया। सेवती आँखें फाड़े-फाड़े यह मन्ज़र देखती रही। सेवती किन्चित् उदास नज़र आई। सेवती की भी माँ बनने की ज़रूर साध होती होगी। उसके मन में भी तीखी चाह जागती होगी कि वह भी किसी गोलमटोल, हँसमुख बच्चे को अपनी छाती से दूध पिलाए।
'तुम्हारा मियाँ भी तो तुम्हें बेहद प्यार करता है। मैंने कहा।
हाँ, प्यार करता है। अनवर मेरे लिए यह साड़ी ख़रीद लाया, तुम्हारे बेटे के 'अनीका' के समारोह में पहनने के लिए! प्यार तो वह ज़रूर करता है।'
'साड़ी-जेवर देने का नाम ही क्या प्यार है, सेवती?'
'बे-शक़ ! इन्सान अगर सच ही प्यार करता हो, तो वह कन्जूस नहीं हो सकता। रुपए-पैसे खर्च करने के लिए दरियादिली की ज़रूरत होती है और दिल जिसके लिए आकुल-व्याकुल हो, उसे सबकुछ दे डालने का मन होता है। रुपए-पैसे, धन-दौलत, जो भी सम्पत्ति हो, सबकुछ...सबकुछ दे डालने का मन होता है।'
उत्सव जब समाप्त हो गया, घर में लोगों की भीड़-भाड़ जब ज़रा कम हुई, तो दोलन बुझी-बुझी-सी आनन्द के पास आ बैठी।
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