उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
उस अमीर घराने की लड़कियाँ काफ़ी महँगे-महँगे फ्रॉक पहनती थीं। उनकी देखादेखी मैं भी ज़िद मचाती थी कि मुझे भी वैसी फ्रॉक चाहिए। लेकिन पापा किसी शर्त पर भी वैसी फ्रॉक नहीं खरीदते थे। वे झट से सवाल करते थे-'महँगे-महँगे कपड़े पहनकर भला कोई सुन्दर लगता है? तुम्हारा परिचय, तुम ख़ुद हो! तुम्हारे अन्दर ही छिपी है, वह पहचान! तुम्हारे ज्ञान, तुम्हारी विद्या में; तुम्हारे आचरण-व्यवहार में बाहरी पोशाक यह सब नहीं कर सकते। जो अन्दर से खोखले होते हैं, वही अपने बाहरी रूप को यूँ जकड़े रहते हैं।'
जब मैं तेरह वर्ष की थी, सड़क पर किसी ने मेरी फ्रॉक पकड़कर खींच दी। उस दिन मैं रोते-बिसूरते घर लौटी। पापा ने मुझे क़रीब बुलाकर कहा, 'लड़की बनकर जन्म लिया है, तो यह मत सोच लेना कि तुम लड़कों से किसी मायने में कमतर हो। जब भी चलना, शान से सिर उठाकर चलना। अपना मेरुदण्ड बिल्कुल सीधी और दृढ़ रखना। रास्ते में कोई छेड़छाड़ करे, बेअदबी करे, तो उसके गाल पर कसकर थप्पड़ जड़ देना।
ये तमाम सीख दे-देकर पापा ने मुझे और नूपुर को बेहद साहसी बना दिया था। हम दोनों ही आस-पास व्यंग्य-तानों, फिकरों, कुटिल हँसी, फेंके हुए पानी के छींटों, पान की पीक, कंकड़-पत्थरों की कतई, कोई परवाह नहीं होती थी। किसी भी तरह की प्रतिबन्धता लाँघ जाने का साहस और मानसिक शक्ति, हम दोनों में मौजूद भी। कम-से-कम कभी, किसी ज़माने में तो ऐसा ही था। लेकिन हम दोनों ही ब्याह की बेड़ियों में जकड़ गईं। नूपुर जितनी सख्त बेड़ियों में नहीं जकड़ी थी, उससे कहीं ज़्यादा सख्त बेड़ियों में मेरे पैर जकड़ गए थे। मेरा परिचय ही अब मेरी लाचारी है। इस समाज में औरत का परिचय, उसके पति के ही परिचय से होता है। यहाँ तक कि सेवती जैसी स्वयंसम्पूर्ण औरत को भी लोग मिसेज अनवर के नाम से ही जानते हैं। इस मुहल्ले में, एन. जी. ओ. कर्मचारी, अनवर से कहीं ज़्यादा, डॉक्टर की ज़रूरत है, लेकिन मुहल्ले वाले अनवर को ही ज़्यादा पहचानते हैं। सेवती डॉक्टर है, यह बात बहुत कम लोग जानते हैं, ज़्यादातर लोग यही जानते हैं कि अनवर नामक यह शख्स कहीं एन जी ओ चलाता है! इस आदमी का एक अदद घर-द्वार है; एक अदद गाड़ी भी है और उसकी एक अदद बीवी भी है। इस मुहल्ले की जिस क्लिनिक में सेवती रोगी देखती है, मुहल्ले के रोगी, इलाज कराने के लिए, मिसेज़ अनवर के पास जाते हैं, डॉक्टर सेवती के पास नहीं। अनवर इस मुहल्ले में ज़्यादा लोकप्रिय हो, ऐसी बात भी नहीं है। वह इस मुहल्ले के विकास के लिए ऐसा कोई काम भी नहीं कर रहा है कि लोग-बाग उसे जानते-पहचानते हों। यह अनवर नामक, किसी शख्स की पहचान नहीं है, बल्कि किसी मर्द की पहचान है। मैं हर महीने जिस डॉक्टर के पास जाती हूँ, वही डॉक्टर मेरी जाँच-परख भी करती है, वे मुझे हारुन उर-रशीद की बीवी के तौर पर पहचानती हैं। वे यह भी जानती हैं कि उस हारुन-उर-रशीद का मोतीझील में एक दफ़्तर भी है और उसका किस चीज़ का कारोबार है! लेकिन डॉक्टर का जो मरीज है, यानी मैं यानी झूमुर हूँ। यह बात डॉक्टर नहीं जानतीं। डॉक्टर यह भी नहीं जानतीं कि मैंने पदार्थविज्ञान में मास्टर्स किया है।
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