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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


हारुन उसी वक़्त, मेरा और अपना पेशाब, शीशी में भरकर धानमंडी ले गया, ताकि किसी क्लिनिक में जाँच की जा सके। जब वह लौटा, तो उसके हाथों में फूलों का बड़ा-सा गुलदस्ता था। फूलों का वह गुलदस्ता, उसने मेरे हाथों में थमा दिया। गुलदस्ता अभी मेरे हाथों में ही था कि उसने मुझे अपनी बाँहों में उठाकर, नाचना शुरू कर दिया। कभी मैं इसी नाच की उम्मीद में, बेतरह बेचैन रहा करती थी।

हारुन मुझे बाँहों में उठाए-उठाए सिर्फ कमरे में ही नहीं, समूची घर में नाचता फिरा। गँठिया के दर्द के बावजूद, सासजी तक उठकर, कमरे से बाहर निकल आईं। वे भी यह जानने को उतावली हो उठीं कि ऐसा क्या हो गया, इतना हो-हल्ला क्यों? हो-हल्ला क्यों न हो? हारुन ने ख़ुशी से नाचते हुए, यह ख़ुशख़बरी सुनाई कि झूमर माँ बनने वाली है। हारुन को किसी बात पर, इस क़दर उच्छ्वसित होते हुए, घर में कभी, किसी ने नहीं देखा। किसी की आँखें, मारे विस्मय के आसमान पर जा चढ़ीं, किसी ने ज़ोर का ठहाका लगाया। सासजी ने कई-कई बार-सुभानअल्लाह! सुभानअल्लाह-दुहराया। उनके चेहरे पर मीठी मुस्कान खिल आईं।

हारुन ने कहा, 'आज पुलाव-गोश्त पकाएँ, अम्मा!'

हारुन की माँ बदन-दर्द के बावजूद बावर्चीखाने में जाकर, पुलाव-गोश्त, कलिया और भी जितनी तरह के पकवान तैयार कर सकती थीं, वे पकाने में जुट गईं।

उस दिन हारुन ने दफ्तर में खबर कर दी कि वह दफ्तर नहीं आ रहा है। वह दफ्तर क्यों नहीं आ रहा है? खुशखबरी है, इसीलिए वह दफ्तर नहीं आ रहा है। ऐसे सखद दिन, दफ्तर में उसका मन नहीं लगेगा।

हबीब के हाथ में दो हज़ार रुपए रखकर, हारुन ने उससे कहा, 'सुनो, अलाउद्दीन में जितनी भी मिठाई हो, बाज़ार में जितने भी फूल हों, सब ख़रीद लाओ।'

हबीब गाड़ी लेकर मिठाई और फूल लाने चला गया। वह भी काफ़ी उच्छ्वसित था।

हारुन ने जो कभी नहीं किया, मुझे सभी घरवालों के सामने चूम लिया। वह बार-बार दोहराता रहा, 'मेरी लक्ष्मी-बहू! मेरी सोना बहू!'

इतने दिनों बाद, लोगों की मुझ पर नज़र पड़ी। इतने दिनों बाद, अचानक लोगों को पता चला कि मैं भी कुछ कर सकती हूँ। मैं भी किसी काबिल हूँ! मैं इस ख़ानदान को चिराग देने जैसा कोई विराट काम कर सकती हूँ। समूचा घर फूलों से भर गया। आस-पास के नाते-रिश्तेदार भी हारुन की तलब पर, हमारे यहाँ आ पहुँचे। मिठाई खाने-खिलाने की धूम मच गई।

किसी-किसी ने यह फिकरा भी कसा, 'भई, लोग तो बच्चा होने के बाद मिठाई खिलाते हैं, यहाँ तो सब आगे-आगे ही...'

हारुन के उत्साह में कोई बाधा नहीं पड़ी। उसने हबीब को भेजकर दफ्तर, बाकी रिश्तेदारों के घर, यहाँ तक कि वारी में बसे घरवालों और नूपुर के ग्रीन रोड वाले घर में भी मिठाई भेजी।

समूचे दिन वह मुझे लेकर व्यस्त रहा। अपने यार-दोस्तों को भी फोन करके, यह ख़ुशख़बरी दे डाली कि वह पिता बनने वाला है!

मिठाई पाकर, कुमुद फूफी खुद चली आईं।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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