उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
सिगार का बदबूदार धुआँ छोड़कर उसने कहा, “एक बात कहूँ? यह बात मैं सिर्फ तुम्हें ही बता रहा हूँ। इस बीच एक काण्ड हो गया है।'
'कैसा काण्ड?'
'काफ़ी रात गए, भाभी मेरे कमरे में आई थी। उस वक़्त उनके बदन पर झीनी-सी एक नाइटी थी! मेरे कमरे में आकर, उन्होंने नाइटी भी उतार दी और बिल्कुल नंग-धडंग, मेरी बग़ल में लेट गईं।
'यह तुम क्या कह रहे हो?' मैं उठकर बैठ गई।
'सुनो तो सही! मैं तो एकदम से सकते में पड़ गया। मैंने उनसे पूछा-यहाँ क्यों आई हैं? भाभी ने जवाब दिया-अब मुझसे सब्र नहीं हो रहा है।'
'किस बात का सब्र?'
'पता नहीं, क्यों बेसब्र हो रही हैं? लेकिन, उसके बाद, मैंने उनकी एक भी, नहीं सुनी। डाँट-डपटकर, मैंने उन्हें अपने बेडरूम में भेज दिया। अब इस घर में मैं नहीं रह सकता। भइया को अगर किसी दिन इस बात की भनक भी मिल गई, तो वे तो खुदकुशी कर लेंगे।'
अपनी युगल आँखों में उमड़ते हुए भरपूर प्यार के साथ अफ़ज़ल ने मेरी तरफ़ देखा। उसका इतना ढेर-ढेर प्यार देखकर, मेरी आँखें चौंधिया गईं।
'सेवती तुम्हारे पास क्यों आती है? ज़रूर तुमने क़रीब आने का कोई इशारा दिया होगा-'
अफ़ज़ल को हतबुद्ध करके, मैं तमककर उठी और ऊपर, अपने फ्लैट में चली आई।
मेरी छाती पर कई-कई नीले निशान बन गए थे! अफ़ज़ल के चुम्बनों के निशान! हारुन की आँखों से वे निशान छिपाने की लाख कोशिशों के बावजूद, मैं नाकाम रही।
एक रात मेरा आँचल हटाकर, मेरी छाती में अपना मुँह रगड़ते हुए, उसकी नज़र उन निशानों पर पड़ गई।
'यह सब क्या है?'
'क्या सब?'
'ये लाल-लाल दाग?'
'लगता है, किसी ने प्यार-वार किया होगा-'यह कहते हुए, मैं ज़ोर से हँस पड़ी।
मैंने अपना ख़ौफ़, हँसी की आड़ में छिपाने की कोशिश की। मेरी हँसी देखकर, हारुन भी हँस पड़ा।
'हकीकत में तो ऐसा कुछ करने का मौका नहीं है, लगता है, मेरा कोई पूर्व-प्रेमी सपने में चूमा-चाटी कर गया होगा-'मैंने कहा।
चुम्बन के उन्हीं निशानों को हौले-हौले प्यार करते हुए, हारुन ने कहा, 'सुनो, चिंगड़ी और ईलिश मछली, मत खाया करो, इससे एलर्जी होती है।'
इन दिनों मैंने सेवती के घर की तरफ़ रुख भी नहीं किया।
चूँकि अब न मुझे माइग्रेन की शिकायत थी, न मैं पेट-दर्द , पीठ-दर्द, आँव वगैरह की शिकार थी, इसलिए हारुन हर रात मेरी कोख में वीर्यपात करता रहा और एक अदद प्यारे-से बच्चे का सपना देखता रहा! गोल-मटोल, प्यारा-सा बच्चा, जो सुभाष या 'आरजू का नहीं, उसका अपना बच्चा होगा।
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