उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
कमला द्वार खोल भीतर आ गयी। वह परेशान प्रतीत होती थी। मा ने पूछ लिया, "कमला। क्या बात है?"
''मां। वह अपने कमरे में नहीं हैं।"
"कौन?"
''आपके......। कमला कहने लगी थी कि दामाद, परन्तु वह संकोचवश कह नहीं सकी। इस समय चन्द्रावती को स्मरण आ गया कि उसने सुन्दरदास को रुपये और कुछ आज्ञा दी थी। यह स्मरण कर उसने पूछ लिया, "राम के विषय में कह रही हो?"
"हां माँ। चौकीदार कहता है कि सुन्दरदास के साथ गये एक घण्टा हुआ है।"
"तो आ जायेगे। मैंने ही उन्हें कहीं भेजा है।"
कमला निश्चिन्त हो चली गयी। इस पर भी यह नित्य से विलक्षण था। कमला के जाने के उपरान्त सेठजी ने पूछ लिया, "कहां भेजा है उसे?"
''प्रकाश के व्यवहार से वह बहुत दुःखी था और कहीं जाना चाहता था। मैंने सुन्दरदास को एक सौ रुपया देकर उसे रात की गाड़ी से जाने के लिये कह दिया है। मुझे विश्वास है कि वह हरिद्वार कृष्णदास के पास गया है। इस पर भी मैंने सुन्दर को कहा है कि उसके साथ रहे और ठिकाना बनते ही लिखे।"
''तुमने ठीक नहीं किया। वह अब लौटेगा नहीं।"
''क्यों? हमसे क्या शिकायत है उसको?''
"वह मेरा पुत्र से झगड़ा कराना नहीं चाहना। आज उसे पता चला है कि उसके यहां रहने से यही हो रहा है। मैंने उससे कमला के विषय में भी बात की थी। उसका कहना था, कि मैं चक्षुविहीन एक अपाहिज हूँ। किसी को आते-जाते देख नहीं सकता। इस कारण किसी को अपने कमरे में आने से मना भी नहीं कर सकता। वैसे मैंने कमला को कहा है कि वह बिना किसी को साथ लिये यहां न आया करे। इस पर भी वह आती है और चरण स्पर्श कर जाती है।
"सूरदास का कहना है कि 'किसी के मन की भावना को मैं निःशेष नहीं कर सकता अपने पर ही मैं नियन्त्रण कर सकता हूं। यह वह रखेगा।
"मैं समझता हूँ कि इसमें उसका कल्याण नहीं है। परन्तु सूरदास चाहता था कि मुझे घर से जाने दीजिये। मेरे जाने से प्रकाश को आप सन्मार्ग दिखाने में सुगमता से सफल हो सकेंगे।''
'कहां जाओगे?' मैंने पूछ लिया। उसका कहना था।, "यहां से कहीं दूर। जहां कमला इस हाड़-चाम के शरीर के रहते पहुँच न सके।"
"मैंने उसे कहा था कि मैं उसका कहीं प्रबन्ध कर दूंगा जिससे वह इस लोक, देश और नगर में रहता हुआ भी कल्याणकारी हो सके।
"यह आज से काफी दिन पूर्व की बात है। मेरा अभिप्राय था कि उसे नये मकान में भेज कर कमला का विवाह उससे कर दूंगा। लोकनिन्दा तो होगी, परन्तु लड़की को सुखी देख वह निन्दा सहन कार लूंगा। साथ ही प्रकाश से स्वतन्त्र होने का उपाय कर सकूँगा।"
''पर अब तो वह गया है। मुझे आपने यह बात पहले बतायी नही थी। बतायी होती तो उसे निश्चित स्थान पर भेजती।"
सेठजी ने सामने दीवार पर लगी घड़ी में समय देखा और यह समझ कि अभी गाड़ी जाने मैं एक घण्टा है, उसने सेठानी से कहा, "मैं समझता हूँ कि चलो उसे स्टेशन पर से लौटा लाये।"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :