उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
''तनिक घुमाने के लिये।"
हवेली से दस पग ही वे गये थे कि सुन्दर ने कहा, "राम भैया। तनिक यहां ठहरो। अपनी पत्नी को कह आऊ। बेचारी चिन्ता करेगी।''
"देखो, जल्दी आना। और मुझे एक ओर ओट में' खड़ा कर दो जिससे कोई गाड़ी, घोड़ा न टकरा जाये।"
सुन्दरदास ने उसे हवेली के पिछवाड़े के एक कोने में खड़ा किया और अपनी पत्नी से सेठानीजी की बात बता कहने लगा, "मैं तो जा रहा हूँ। तुम सेठानीजी से मिलती रहना। किसी बात की आवश्यकता हो तो उनको कहना।"
इस प्रकार उससे छुट्टी पा वह सूरदास के पास आ गया और उसका हाथ पकड़ पूछने लगा, "तो रेल के स्टेशन पर चलें?"
"नहीं सुन्दर। यहां से मोटर बस के अड्डे पर पैदल ही चलना चाहिये।''
''पर आखिरी बस तो चली गयी होगी।''
''तब मोटर की सड़क जो कासगंज को जाती है, चलेंगे। रात को किसी गांव इत्यादि में ठहर जायेंगे और प्रात: जिधर की बस पहले मिलेगी, उधर ही चल देंगे।"
"तो बहती नदी में नौका छोड़ दें?''
"नहीं। भवसागर की उत्ताल तरंगों पर यह छोटी सी तरणी चलेगी और रामजी के आश्रय से यह दुस्तर सागर पार कर लेगी।"
भोजनोपरान्त सेठजी जब शयनागार में पहुंचे तो पत्नी से कहने लगे, "इस पर भी मैंने प्रकाश को अपने कारोबार से बेदखल करने का निश्चय कर लिया है।"
"क्यों?"
"देखो चन्द्र। व्यापार में क्या और घर के कार्यों में क्या, धर्म-कर्म में क्या और जाति-बिरादरी के कामों में क्या, विचार समानता मेरे जीवन का आश्रय रहा है। इस सिद्धान्त पर चलने से मुझे भारी सफलता मिली है। प्रकाश से तो आरम्भ से ही मतभेद रहा है, परन्तु तुम्हारा प्रिय होने के नाते मैं उसे सहन करता रहा था। घर के प्रबन्ध में तथा अपने धर्म-कार्यों में तो मैंने उसका आश्रय कभी लिया नहीं। व्यापार में उसका आश्रय अवश्य लेता था, परन्तु यह इस कारण कि अन्य कोई आश्रय दिखाई नहीं देता था। अब कमला उससे भी अधिक योग्य समझ में आ रही है, अत: मैं इसमें भी उससे स्वतन्त्र हो रहा अनुभव करता हूँ।
"अब मैं उससे पृथक ही कारोबार करूंगा। इस कारण प्लससे पृथकता स्वीकार करने के लिये मैं कल उसके दिल्ली जाने से पूर्व सब कृछ निर्णय कर दूंगा। लिखा-पढ़ी तो पीछे वकीलों से करवानी होगी।"
चन्द्रावती विस्मय में मुख देखती रह गयी। सेठजी ने अपने मन की बात और स्पष्ट कर दी, "मैं उसे अपने कारोबार का चौथा भाग देना चाहता हूं। नकद अथवा कारोबार, जो वह चाहेगा। परन्तु यदि तुम इसे कम समझो तो तुम बता देना कि अधिक क्या दूं? मैं इसमें तुम्हारी बात मानूंगा।"
"और शेष तीन भाग किसके लिये हैं?''
''एक तुम्हारा, दूसरा मेरा और तीसरा कमला का।"
"तुम्हारा वंश भी तो चलना चाहिये।"
''कमला का विवाह करूंगा और उसकी प्रथम सन्तान को गोद ले लूंगा।"
"किससे विवाह करेंगे?''
इस समय उनके कमरे का द्वार किसी ने धीरे-धीरे खटखटाया। सेठजी ने आवाज दे दी, "कौन?''
''कमला।'' आवाज आयी।
''आ जाओ।" सेठानी ने कह दिया।
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :