उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
|
0 |
गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
''इस इमारत की भव्यता के विचार से कुछ कमरे ऊपर की मंजिल पर भी बनवा लिये गये हैं। कमला का विचार है कि अब वह पिताजी के कारोबार में लग गयी है और उसके पिताजी को वह सुखकर लग रही है। अतः अपने विवाह के उपरान्त इसी नगर में रहने के लिये वह ऊपर के कमरे प्रयोग करेगी।"
"मुझे इस सबमें आपत्ति नहीं। मेरा तो यह कहना था कि उसके विवाह का प्रबन्ध आपको करना चाहिये।" प्रकाश ने अपनी ओर से रस्सा-कशी में पराजय स्वीकार करते हुए कहा।
उत्तर सेठजी ने दिया, "यह तो है ही। कमला ने भी यह स्वीकार किया है कि विवाह शरीर का कार्य है और इस पर माता-पिता का स्वामित्व है। अत: इस बात की तुम्हें चिन्ता नहीं करनी चाहिये।" "तब ठीक है। सूरदास को कब नये मकान में भेजेंगे?''
''ज्योतिषी ने चैत्र पूर्णिमा का दिन निश्चय किया था, परन्तु उन दिनों तुम निर्वाचन कार्य में व्यस्त थे। अब वैशाख प्रतिपदा के दिन भवन का प्रवेश संस्कार करने का विचार है।"
''ठीक है पिताजी! मैं तो दो दिन में दिल्ली जा रहा हूं और यदि उन दिनों अवकाश हुआ तो इस समारोह में सम्मिलित हो जाऊंगा।"
सब उठ खड़े हुए। सेठजी का विचार था कि घर के मामलों में प्रगति हुई है। परन्तु यह भ्रम सिद्ध हुआ।
|
- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :