उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
''भैया! माता-पिता से बात कर लो। जब तक यह शरीर है, यह उनकी धरोहर है। परन्तु यह आप सबको विदित होना चाहिये कि शरीर को जीवित और हरा-भरा रखना किसी अन्य का काम है। उससे सम्मति किये बिना इसकी व्यवस्था की गयी तो वह इसका पालन और पोषण छोड़ भी सकता है।"
''और इस शरीर के आनन्द और रसों से भी तो वह वंचित हो जायेगा।"
''वह इस बात को सुन रहा है और इस पर विचार कर लेगा।"
"मैं समझता हूँ कि यह सब खराबी बहन शीलवती की मिथ्या शिक्षा का फल है।''
इस पर चन्द्रावती ने कह दिया, "एक बहन की व्यवस्था करने के उपरान्त अब दूसरी बहन को घर से निकालने की व्यवस्था करने लगे हो?''
सेठजी ने कह दिया, "प्रकाश ने सूरदास को घर से निकालने के उपरान्त कमला की कहीं दूर व्यवस्था का विचार बना लिया है और इतने से सन्तोष न कर बेचारी शीलवती को घर से निकालने का संकेत कर रहा है। मैं समझता हूँ कि उसके उपरान्त तुम्हारा प्रयास मेरे और अपनी मां के विषय में ही हो सकता है।"
''पिताजी। मैंने किसी को निकालने के विषय में कहा क्या?"
''तो क्या प्यार और आदर से रखने के विषय में यह समझूँ?"
भोजन समाप्त हो चुका था, परन्तु बात समाप्त नहीं हुई थी। प्रकाशचन्द्र ने समझा था कि उसके आज के कथन का परिणाम यह भी हो सकता है कि पिताजी उसकी ही घर से छुट्टी कर दे। एक बात वह देख रहा था कि पिछले तीन मास से उसन कारोबार में हाथ नहीं लगाया था और इस पर भी काम चल रहा है। उसके पिता ने कहा था कि प्रकाश से तो कमला व्यापार में अधिक समझदार प्रतीत होती है। इस आशंका पर कि व्यापार में उस पर निर्भर न रहने पर पिताजी उसे व्यर्थ का प्राणी मान उसको घर में एक गुज़ारेदार भी तो मान सकते हैं।
इस आशंका पर उसने अपने पग वापिस करने का विचार बना लिया। उसने कहा, "पिताजी! यह आपको भ्रम हो रहा है कि मैं किसी को घर से निकालने के लिए कह रहा हूँ। मैंने कब कहा है कि राम भैया को यहाँ से चलता किया जाये? मैंने केवन यह कहा है कि उससे घर की प्रतिष्ठा और मान लुट जाने की सम्भावना है। इसमें कमला ने विश्वास दिलाया है कि घर का मान एवं प्रतिष्ठा आपके पास सुरक्षित है। मैंने कमला बहन को भी घर से निकालने का विचार प्रकट नहीं किया। मैं कुछ ऐसी व्यवस्था कर रहा हूँ कि जिससे यह इसी घर में रहती हुई फले और फूले। रही बात बहन शीलवती को। मैंने उसै यह कहा है कि कमला ने जो मर जाने की धमकी दी है, यह उसकी शिक्षा का फल है।"
अब कौड़ियामल्ल ने कह दिया-''मैं तो पढ़ा-लिखा कुछ हूं नहीं। मिडल बोर्ड की परीक्षा पास नहीं कर सका। इस कारण मैं उसका मार्ग-दर्शन नहीं कर सकता। केवल इतना ही तो कह सकता हूँ कि उसकी शिक्षा हमसे विलक्षण है।"
इस पर चन्द्रावती ने कहा, ''तो तुमको राम मैया के घर से कहीं
बाहर न भेजने पर आपत्ति नहीं। सुनो, मैंने हवेली के सामने वाला मकान राम के लिये बनवाया है। मेरी योजना बहन छोटी थी। केवल राम के लिये दो कमरे बनाने का विचारे था, परन्तु कमला ने उस योजना में संशोधन कर दिया है। उसने विचार किया है कि राम की राम-कथा का प्रबन्ध भी उसी मकान में कर दिया जाये। नीचे एक बड़ा हाल कथा-कीर्तन के लिये बनवा दिया है। साथ ही एक पुस्तकालय और पुस्तकालय अध्यक्ष के रहने का भी स्थान है। सूरदास की आंखें, सुन्दरदास के लिये भी उसी मकान में स्थान है।''
"पर मां! ऊपर के कमरे किसलिये बनवाये हैं?''
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :