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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''नहीं प्रकाशजी। यह नही होगा। इससे कांग्रेस के संक्युलर मोर्चे में दरार पड़ रही है।''

''क्या दरार पड़ रही है?''

''राज्य विधान सभाओं के कुछ प्रत्याशी इस विषय में बेचैनी अनुभव कर रहे हैं और वे आपकी सभाओं मे स्थानीय प्रभाव को पृथक कर लेगे।''

मिस्टर शर्मा के क्षेत्र मैं दौरे के दो प्रभाव हुए। एक तो मुसलमानों को यह समझ आया कि प्रकाशचन्द्र कांग्रेस से बाग़ी हो एक हिन्दू राज्य का प्रचार कर रहा है। दूसरे हिन्दुओं को यह समझ आया कि राम कथा कीर्तन सैक्युलर की भावना के विपरीत है।

माठ विधान सभा के क्षेत्रों में से तीन राज्य विधान सभा के प्रत्याशियों ने तो अपनी सभायें पृथक करनी आरम्भ कर दइा?। एक क्षेत्र में तो प्रकाशचन्द्र को काँग्रेस के सिद्धान्तों का विरोधी घोषित किया जाने लगा। वहां पर यह होने लगा कि राज्य विधान सभा का मत तो काँग्रेस के प्रत्याशी को दें और लोक सभा का मत कम्युनिस्ट को दें। अन्य विधान सभा के प्रत्याशियों ने भी सूरदास के उनके क्षेत्र में आने पर आपत्ति करनी आरम्भ कर दी।

राम कथा और कीर्तन के विंषय में घर पर भी बात हुई। सूरदास के कमरों में बैठे हुए प्रकाशचन्द्र ने अपने पिता सेठजी को बताया, ''लखनऊ से मिस्टर शर्मा आये थे और कह गये है कि राम का निर्वाचन सभाओं में राम कथा तथा राम राज्य की. बात करनी मेरे विरुद्ध जा रही है। नेहरूजी भी आये थे और मेरे क्षेत्र में तथा यहां बदायूं में व्याख्यान दे गए हैं। उन्होंने राज्य विधान सभा के कांग्रेस प्रत्याशियों का नाम लें-लेकर समर्थन किया है। यहाँ तक कि इस नगर में तो यह भी कह दिया है कि 'यहां राम राज्य नहीं, स्वराज्य स्थापित हुआ है। राम राज्य राम के भक्तों का राज्य है और स्वराज्य

पूर्ण जनता का अपना राज्य है। राम का अर्थ परमात्मा को लें। तब भी तो हमारे सैक्युलर राज्य का विरोधी होगा और यदि राम से अभिप्राय अवध का राजा है तो यह पूर्ण जनता का राज्य नहीं होगा।

''पिताजी! इससे तो नगर में भी लोग राम कथा पर आपत्ति करने लगे हैं। मुंशीजी ने कहा है कि पण्डितजी के यहां आने से अपने जीतने की आशा कम हो गयी है और मुकाबले के जनसंघी प्रत्याशी के सफल होने की आशा बढ़ गयी है।"

कौड़ियामल्ल ने मुस्कराते हुए पूछ लिया, "कितना रुपया व्यय हो चुका है?''

''इस समय तक दस लाख के लगभग व्यय हो गया है।"

"देखो प्रकाश! तुम कांग्रेस-टिकट छोड़ दो और स्वतन्त्र लड़ो।"

"इससे सफलता की आशा तो सर्वथा क्षीण हो जायेगी।"

"पर तुमने लोक सभा में जाकर क्या करना है? जहाँ पण्डितजी जैसे नेता हों, वहां तुम्हारे राम की कौन सुनेगा?''

"पर पिताजी! इस समय नदी के तेज बहाव में पहुंचकर घोड़ा बदलने से क्या लाभ है?''

इस पर सूरदास ने कहा, "भैया। तुम अपना नाम लोक सभा के प्रत्याशी पद से वापिस ले लो।"

"क्यों?"

"जहाँ राम की महिमा नहीं वहाँ अन्धकार के अतिरिक्त कुछ नहीं रह जाता। संसार की एक मात्र ज्योति तो वही है। उसी से ही तो यह जगत् प्रकाशमान हो रहा है।"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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