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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''मुझे प्रत्येक राज्य विधान सभा के निवचिन क्षेत्र के लिये एक मोटर-गाड़ी और दो-दो जीपें रखनी चाहियें। मुझे अपने निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्येक मतदाता से लिखित और मौखिक सम्पर्क बनाना चाहिये। इसके लिये छपाई और प्रचार का प्रबन्ध होना चाहिये। कम से झुम आठ और अधिक से अधिक चौबीस ब्राडकास्टिंग सैट खरीद कर केन्द्र स्थानों पर रख देने चाहियें। एक व्यक्ति और उसके अधीन आठ व्यक्ति हिसाब-किताब लिखने के लिये नियुक्त होने चाहिये।

''कृष्ण कुमार का कहना है कि जब धन व्यय करना ही है तो प्रभावी ढंग से करना चाहिये। मैं मुँशी कर्त्तानारायण को मुख्य प्रबन्धक नियुक्त कर रहा हूँ।''

"मैं तो यह विचार कर रहा हूँ कि तुम और मुंशी तो अब इस काम में लग जाओगे और इधर बम्बई जाने की आवश्यकता अनुभव होने लगी है। मैं स्वयं जा रहा हूं, परन्तु पीछे कार्यालय में किसको नियुक्त करूँ?'' 

''तो भागीरथ का क्या समाचार है?"

''उसका किसी प्रकार का समाचार नहीं।"

''तो एक पत्र लिख दीजिये।"

''पत्र तो तार के साथ ही डाल दिया गया था। उसमें मैंने उसके पिता को अपना विचार लिखा था, परन्तु उसके पिता का भी कोई उत्तर नहीं आया।

"देखो प्रकाश! मैं समझता हूँ कि आज से कमला को कार्यालय के काम का परिचय कराना आरम्भ कर दूं।"

इस पर चन्द्रावती ने कह दिया, "इससे काम हो नहीं सकेगा।"

कमला ने मां का फ़तवा सुन कह दिया, "तो परीक्षा के पहले ही अनुत्तीर्ण घोषित?"

कौड़ियामल्ल ने मुस्कराते हुए कहा, "मुझे कमला की यह बात इस प्रकार समझ में आ रही है।

'मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन।
'जासु कृपा सो दयाल दवउ सकल कलि मल दहन।।'

"तो पिताजी! मैं आज से कीकार्य आरम्भ कर दूँ?'' कमला ने पूछ लिया।

"हां। भोजनोपरान्त मैं आधा घण्टा विश्राम करूँगा और ढाई बजे तुम कार्यालय में आ जाना। मैं तुमको कुछ बातें बताऊँगा और कार्यालय के सब लोगों को बताऊँगा कि मेरी अनुपस्थिति में तुम कार्य किया करोगी।

''दो-तीन दिन में तुम्हें बैकों में खाता-चालक भी नियुक्त करवा दूंगा।"

ढाई बजे कमला कार्यालय को जाने लगी तो मार्ग में जाते-जाते रुक गई और एकाएक सूरदास के कमरे की ओर घूमी। सूरदास भी भोजन के उपरान्त विश्राम कर, उठ चुका था और अपना तानपुरा स्वर कर रहा था कि कमला चुपचाप वहां पहुंची और सूरदास के चरण स्पर्श कर अपने हाथों को मस्तक से लगाने लगी।

सूरदास को स्पर्श हुआ तो वह चौंका और समझ बोल उठा,  "कमला हो?"

"जी।"

''अब क्या हुआ है?

''मुझे पिताजी ने अपने कार्यालय में काम पर लगाने का निश्चय किया है।"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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