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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

"आचार्य जी। गांधीजी के कौन राम थे?''

आचार्यजी ने कहा, "वह बेचारे भ्रम में फंसे हुए थे। मुख से कहते थे......

मेरे राम घर घर के वासी।

समरथ सकल अमल अविनाशी।।

''परन्तु कान से मुनने की अभिलाषा रखते थे...

रघुपति राघव राजा राम।

पतित पावन सीता राम।।

''इस राम ने तो रग्वण को मार डाला था और गांधीजी कहते थे कि हिंसा पाप है।''

''पर आचार्यजी। दोनों एक नहीं थे क्या?'' सूरदास ने पूछा।

जासु कथा कुभंज रिषि गाई। भगति जासु मुनिहि मैं सुनाई।।
सोइ मम इष्टदेव रधुबीरा। सेवत जाहि सदा मुनि धीरा।।
मुनि धीर जोगी सिद्ध सतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं।
कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावही।।
सोइ रामु व्यापक मह्य भुवन निकाय पति माया धनी।
अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रघुकुलमनी।।

''हां, यह तो है। परन्तु भ्रम तो हिंसा-अहिंसा में है।"

''परन्तु बाबू प्रकाशचन्द्र किस राम के उपासक हैं?"

"अभी तक तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता। सम्भवत: ये दोनों में से किसी के भी उपासक नहीं। अभी तक मायाराम की ही उपासना करते रहे पैं। साथ ही सेठजी के दया, धर्म दान-दक्षिणा के आवरण में यह भी दयावान् तथा धर्मात्मा माने जाते रहे हैं।

''अब समय आया है जव इनकी परीक्षा होगी। मेरा मन कहता है कि बाबू असफल रहेंगे।"

"क्यों?"

''जो सिमरत अवधेष कुमारा बही बसैं जग पालन हारा।।

इस पर सूरदास विस्मय मरी आंखों से आचार्यजी की ओर देखने लगा। आचार्य जी बोले। "देखो राम! भगवान् जानै तुम्हारी संगत में यह जड़ पत्थर भी पारस बन जाये......

गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा।।
साधु-असाधु सदन सुकसारी। सिमरहिं राम देहि जनगारी।। 

"तुम्हारी संगत में प्रकाशबाबू सागर तर जायें।"

मध्याह्न के भोजन के समय परिवार एकत्रित हुआ तो प्रकाशचन्द्र ने अपने टिकट मिल जाने की बात बता दी। उसने कहा, 'पिता जी! मैं प्रात: मुरादाबाद से प्रस्थान करने वाला था कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस के निर्वाचन बोर्ड के संयोजक मिस्टर शर्मा मिल गये और उन्होंने बताया है कि केन्द्रीय निर्वाचन बोर्ड ने मेरा नाम स्वीकार कर लिया है और एक-दो दिन में मुझे टिकट मिलने की बात घोषित होने वाली है।"

''तो कृष्ण कुमार ने क्या कहा है?"

''उसने योजना बना दी है। मेरे क्षेत्र में विधान सभा के आठ क्षेत्र हैं। उन सबका प्रबन्ध करना पड़ेगा। मुझे सबका एक प्रबन्धक नियुक्त करना चाहिये। उस मुख्य प्रबन्धक के अधीन आठ उप-प्रबन्धक और उनके अधीन मतदान केन्द्र प्रबन्धक और प्रत्येक केन्द्र पर केन्द्राध्यक्ष के साथ पांच-पांच सहायक रखने चाहिये। इसका अभिप्राय है कि मुझे दो सहस्त्र छ: सौ पचास कर्मचारी नियुक्त करने चाहियें।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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