| उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
"आप उसे बुलाइये, शेष मैं समझ लूंगी।"
"अच्छी बात है। कल तार दे दूंगा।"
"सूरदास को घर से बाहर कर दीजिये।"
"कहां कर दूं?"
''सुन्दरदास को जो मकान दे रखा है, वहां उसे भेज दीजीये।"
"पर वह मकान तो सूरदास के रहने योग्य नहीं है। मकान में सुन्दरदास के पास केवल दो कमरे हैं। शेष मकान में घर के चौकीदार और चपरासी रहते हैं। मकान से बाहर टट्टी है, गुसलखाना दूसरी तरफ है, रसोई घर कोई है नहीं, बाहर खुले में चुल्हे बने हैं।"
''यह तो ठीक है, परन्तु अब उसका इस घर में रखना ठीक नही हे।"
''कुछ धीरज करो। मैं उसके लिये हवेली के बाहर उचित प्रबन्ध कर दूगा।"
''शीघ्र करना चाहिये। मुझे सूरदास पर विश्वास नहीं रहा।"
"परन्तु क्या किसी प्रकार की खराबी हो गयी है?"
''हो जाने की सम्भावना है।"
''तो उसको रोको।"
''सुन्दरदास से भी बातचीत की गयी। उसने सेठानीजी को बता दिया कि कमला बहन कहती है कि सूरदास के कमरे का द्वार
खुला रखा जाये। अत: रात सोने से पूर्व चन्द्रावती ने कमला के कमरे को बाहर से ताला लगा दिया।
अगले दिन नियमानुसार सूरदास प्रात: चार बजे उठा और कमरे के साथ ही सम्बन्धित 'बाथ रूम' में शौचादि से निवृत्त हो अपने पूजा-पाठ में लग गया। तदनन्तर उसे संगीत का अभ्यास कराने वाला शिक्षक आ गया। सूरदास का कमरा बाहर से बन्द था। मधुकर संगीताचार्य ने देखा तो समझ नहीं सका। उसने द्वार खोला और भीतर आ सूरदास से पूछ लिया, "राम भैया। बाहर से दरवाजा बन्द क्यों करवा रखा था?"
''मैंने तो भीतर से बन्द किया था। स्नान करने के उपरान्त खोल दिया है।''
"परन्तु यह बाहर से भी बन्द था?''
"मुझे ज्ञात नहीं कि यह किसने बन्द किया है?''
''मैं समझता हूं कि यह प्रकाशजी ने करवाया होगा।"
"क्यों? उनका इसमें क्या प्रयोजन हो सकता है?''
"उनको अब राम भैया की बहुत आवश्यकता है और वह समझे होंगे कि निर्वाचन के कार्य से डर कर आप भाग न जायें।"
''तो यह निर्वाचन कार्य किसी प्रकार से डरने वाला कार्य है?"
"वह तो है ही। सब प्रकार के कार्य निर्वाचन जीतने के लिये किये जा सकते हैं और किये जाते हैं। कदाचित् किये भी जाने वाले हैं।"
"उनसे मेरा क्या सम्बन्ध है? मैं तो हरि कीर्तन करना जनता हूं और वह ही करूंगा। किसी का विवाह हो अथवा दाह-संस्कार हो, मैं तो कीर्तन ही करूंगा।"
इतना कह सूरदास ने अपने तानपुरे की तारें छेड़ दी। स-प की ध्वनि उठने लगी। मधुकरजी ने एक दो क्षण सुनकर कह दिया, "अब तो तुम्हें स्वर करना आ गया है।"
''हो, अब सहज ही स्वर करते बन जाता है।''
मधुकर ने भैरवी के स्वर उच्चारण करने आरम्भ कर दिये। सूरदास उसका साथ देने लगा। स्वर भजन के बोल गाय जानै लगे।
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :

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