उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
गांव के बाहर सेठजी के अपने खेत थे। वहां का अन्न इसी कार्य में प्रयुक्त होता था। वहां की साग-भाजी भी इसी भोजनशाला में प्रयोग होने लगी थी। कमला को इस काम में अब विमला सहायक मिल गयी।
इस अन्न क्षेत्र का व्यय दस सहस्र रुपया महीने का हो रहा था। ऐसी स्थिति थी जब प्रकाश लोक सभा का अधिवेशन समाप्त कर बदायूं पहुँचा था।
हवेली का द्वार अभी बन्द था। बड़े फाटक में खिड़की खुली थी और घर के प्राणी सो रहे प्रतीत होते थे। परन्तु हवेली के सामने रामजी के मन्दिर में प्रकाश हो रहा था और आरती हो रही थी।
चौकीदार से प्रकाश ने पूछा, "क्या यहां पूजा-पाठ आरम्भ हो गया है।
''जी!"
"कोई पुजारी रख दिया गया है?''
"जी नहीं। कमला बहन और विमला बहन, दोनों ही प्रबन्ध करती हैं।"
''तो वे पूजा कराती हैं?"
"जी नहीं! वे तो केवल धो-पोंछ मन्दिर को साफ कर देती हैं। पूजा तो लोग स्वयं करते हैं। भण्डारे का कार्य नौ बजे आरम्भ होता है। ग्यारह बजे से अन्न बंटने लगता है और एक बजे तक क्षेत्र खुला
रहता है। इन दो घन्टों में दोनों बहनजी स्वयं खड़े होकर प्रबन्ध देखती हैं।"
प्रकाश भीतर चला गया। उसकी स्त्री श्रीमती अभी खर्राटे भर रही थी। प्रकाश ने उसे जगाया और पूछ लिया, "स्वास्थ्य कैसा है?"
"सदा की भांति ही है।" उठते हुए श्रीमती ने कह दिया।
आधी रात से अधिक काल तक मोटरगाड़ी में यात्रा करने के कारण प्रकाशचन्द्र थकावट अनुभव कर रहा था। वह कपड़े बदल सो गया।
आठ बजे उसकी जाग खुली और वह स्नानादि में लग गया। नौ बजे अल्पाहार का समय था। वह भोजन करने वाले कमरे में चला गया। वहाँ उसकी मां, बहन, विमला और शीलवती उपस्थित थीं। इनको प्रकाश के आने का समाचार मिल चुका था। जब प्रकाशचन्द्र वहाँ पहुँचा तो माताजी को प्रणाम कर उसने कमला को मी नमस्कार कह दी। शीलवती से उसने मुस्करा कर पूछ लिया, "मास्टर जी कैसे हैं?"
''स्कूल पढ़ाने चर्ल गये है।"
''प्रकाश ने विमला से बात। नहीं की। उसने माताजी से ही पूछा, "पिताजी आजकल कहाँ हैं?''
"इस बार उनको गये पन्द्रह दिन से ऊपर हो गये हैं। यहां से कानपुर, लखनऊ, पटना, कलकत्ता गये थे। वहां से अब बम्बई चले गये हैं।"
''कलकत्ता कब गये थे?"
''दस दिन हो गये हैं। उनका पत्र आया था। लिखा था कलकत्ता का कारोबार बन्द करना पड़ेगा। '
''क्यों?"
''उनका विचार था कि वहाँ बंगाली और गैर बंगाली का प्रश्न उग्र हो रहा है और बंगाली, छोटे से छोटा तथा बड़े से बड़ा सब, उचित, अनुचित में बंगाली का ही पक्ष लेते हैं। यहाँ तक कि इस बात की झलक न्यायालयों मे भी दिखायी देने लगी है। इस कारण वह वहाँ का कारोबार समेटने के लिये कह आये थे। उनका विचार है कि इसमें छ: मास लग जायेंगे।"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :