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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''अब बताओ प्रकाश! क्या कहते हो?''

''मैं विमला से पृथक में बात कर ही निश्चय करना चाहता हूं।''

''ठीक है। दिल्ली जाने से पूर्व बता जाना। देखो विमला, तुम स्केच्छा से निर्णय करो। मैं उसमें हस्तक्षेप नहीं करूंगा। मेरा तुम्हारे प्रति एक उत्तरदायित्व है और तुम कुछ भी करो, किसी भी मार्ग पर चलना चाहो, मेरी सहायता और आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। यदि निर्णय करने में किसी कारण से कठिनाई हो तो शीलवती से अथवा प्रकाश की माँ से समझ-समझा सकती हो।''

प्रकाशचन्द्र विमला को अपनी पत्नी के पास ले गया और उसे एक कुर्सी पर बैठा श्रीमती को कहने लगा, ''देखो श्रीमती! यह कौन है?'' श्रीमतां सोने की तैयारी कर रही थी।

''देखी है। इसकी पैदावार को भी देखा है।''

"फिर क्या विवार है?''

''किस विषय में पूछ रहे है?''

"इसे इस घर में तुम्हारे बराल वाले कमरे में लाकर रखने के विषय में।"

''माँजी से पूछ लीजिये। मकान उनका है। यदि उनको आपत्ति नहीं तो मुझे भी नहीं।"

''विमला! अब बताओ?''

"परन्तु मेरे यहां आकर रहने में बाधा श्रीमती बहन नहीं।'' इस पर श्रीमती ने विस्मय प्रकट कर पूछ लिया, ''तो माताजी बाधक हैं? उन्होंने तो मुझे ऐसा नहीं बताया।''

''नहीं! माताजी बाधक नहीं।'' प्रकाशचन्द्र ने कहा, "मैं विमला को यह बताने के लिए यहां लाया था कि तुम भी इसके यहां आने में रुकावट नहीं हो।"

श्रीमती ने पतंग पर टाँगे लम्बी करते हुए कहा, ''मेरे सोने का समय हो गया है। अब आप जा सकते हैं।''

''कहाँ जाऊँ?'' प्रकाशचन्द्र ने पूछ लिया।

"विमला के कमरे में।''

विमला और प्रकाशचन्द्र उठकर कमरे से बाहर निकल आये। बाहर आते ही विमला ने कहा, ''मैं आपके साथ पत्नी के रूप में नहीं रह सकती।"

''रहो अथवा न रहो। परन्तु तुम हो तो पत्नी ही। वह अब कैसे बदल सकती हो।"

''वह अज्ञानता मे बचपना हो गया था। अब सज्ञान हो गयी हूं। मक्खी देखकर निगली नहीं जा सकती।"

''तब?''

''आप अपने पिताजी से मेरे विषय में कह दीजियेगा।"

''अभी नही कहूगा। अभी तो केवल इतना कहता हूं कि सुबह जाने से पूर्व मिलूंगा।''

प्रातःकाल प्रकाशचन्द्र से मिलने के पूर्व विमला शीलवती से मिली और उसने अपने मन की बात उसै बतायी। शीलवती ने उसके मन के भावों को आदर सै स्वीकार करते हुए पूछा,"पर करोगी क्टाा ?''

''यही तो आपसे पूछी के लिए आयी हूं।"

''देखो, विवाह कर लो।"

''किसलिये?''

''पहले किसलिये किया था?"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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