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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास


वह लघु आहार करने का स्वभाव रखता था, चटनी अचार खाने का शौकीन था। सब्जियां अधिक खाता था और चावल, दाल कम। साथ ही उसने सबके साथ ही चावल समाप्त किये तो खाना समाप्त कर दिया। मेज पर बैठे दूसरे तो अभी पूरी खाने लगे थे। उसने कहे दिया, "बस! पेट भर गया है।"
''भैया राम! इतने मात्र से इतने बड़े शरीर का काम कैसे चलेगा?" प्रियवदना ने पूछ लिया।
''अभी तक तो चल रहा है। जब यह और मांगेगा तो अधिक लेने लगूंगा।''
भोजन समाप्त हुआ तो बूआ भतीजी सूरदास को उसके कमरे में ले गयीं। उसे बैठा तारकेश्वरी ने पूछ लिया,"राम! अब आराम करोगे?''
''अभी कुछ काम तो किया नहीं। कई दिन से कुछ काम नहीं हो रहा। इस कारण आराम क्या करूं? किस बात से आराम करूं?'' प्रियवदना हंस पड़ी और पूछने लगी, "तो भैया! पीसने को यहा चक्की ला दें?"
''हां, बहन। मेरे योग्य चक्की मिल जाये तो कुछ मेहनत-सुशक्कत कर सकूंगा। यदि असम्भव न हो तो मुझे एक तानपुर मौर दो खड़तालें मंगवा दे। मेरे लिए कार्य मिल जायेगा।"
''तो यह बात है?" तारकेश्वरी ने मुस्कराते हुए कहा। उसने प्रियवदना की ओर देख पूछ लिया, "ये कहां मिलेंगे?" वह जानती थी कि स्कूल तथा कालेज में उसे कुछ संगीत में रुचि रही है।
प्रियवदना ने आंखें मूँद विचार किया और कहा, "मैं अभी पता करती हूं कि ये वस्तुयें कहां मिल सकती हैं। सायंकाल तक इनका प्रबंध हो जायेगा।"
सूरदास ने कहा, "फर्श पर दरी, चादर और गद्दे का प्रबंध हो जाये तो मुझे सुविधा रहेगी।"
तारकेश्वरी ने मृदुला को कहा, "यह सारा प्रबंध करा दो। इसके
बाद उसने उठते हुए कहा, "राम! मैं काम पर जा रही हूं। यह बहन प्रियम् दूसरे कमरे में है और समीप ही मृदुला भी रहेगी। मृदुला तुम्हारे कमरे में तुम्हारी रुचि अनुसार सारा प्रबंध कर देगी। मैं समझती हूं कि तुमको अब यहां सुखपूर्वक रहना चाहिये।" 

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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