उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
मैं उसकी बग़ल में आ बैठी, लेकिन उसने पलटकर भी नहीं देखा। मैंने उसकी. पीठ पर अपनी हथेली रख दी, लेकिन तब भी उसने पलटकर नहीं देखा।
मैंने दरयाफ्त किया, 'मूड क्यों ख़राब है?'
हारुन ने तब भी कोई जवाब नहीं दिया। वह मेरे बग़ल से उठ खड़ा हुआ और कपड़े बदलकर, उसने जूते उतारे और लेट रहा। उसके सिरहाने बैठकर, मैंने उससे कई-कई सवाल कर डाले।
'मुझे बताओ तो सही, तुम्हें हुआ क्या है? तुम खाओगे नहीं? तबीयत तो खराब नहीं है? क्या बात है? क्या हुआ है तुम्हें? तुम इतना अस्वाभाविक आचरण क्यों कर रहे हो?'
इन तमाम सवालों का मुझे कोई जवाब नहीं मिला। मैं बिल्कुल ख़ामोश हो रही, उसे यूँ शब्दहीन होते हुए, मैंने कभी नहीं देखा अगर कारोबार में कोई झमेला हुआ होता या दफ्तर में कोई गड़बड़ी हुई होती, तो शाम को डॉक्टर के यहाँ जाने से पहले ही, उसका आभास मिल जाता। मुझे समझ में नहीं आया कि मुझे क्या करना चाहिए। असहनीय निःशब्दता मुझे ज़ोर-ज़ोर से चाबुक बरसाती रही!
उस रात, हारुन ने खाना नहीं खाया। पति ने अगर खाना न खाया हो, तो पत्नी को भी नहीं खाना चाहिए। लोगों की आँखों को भला नहीं लगता। सासजी ने जब मुझे खाने के लिए आवाज़ दी, मैंने टाल दिया-भूख नहीं है। खाने का मन नहीं है।
हारुन के बालों में उँगलियाँ फेरते हुए मैं बार-बार पूछती रही, 'तुम्हारा मूड क्यों ख़राब है? तुम्हें किसी की याद आ रही है? किसकी? मुझे बताओ।'
हारुन में सिर हटा लिया। बार-बार मुझे झटक दिया। उसे अपने बालों में उँगलियाँ फेरना, बिल्कुल पसन्द नहीं था। पीठ पर हथेली रखते ही, उसने अपनी पीठ भी हटा ली। मुझे भयंकर दहशत होने लगी। आज ऐसा ख़ुशी का दिन, उसे बिल्कल ख़शी नहीं हो रही है। वह दीप की तरह नाच भी नहीं रहा है। बल्कि उसके जीवन की जो स्वाभाविक मति-गति थी, वह भी अचानक थम गई थी। उसका लेटे रहना, ख़ाने के लिए न उठना, बातचीत न करना...हारुन को इतने बुरे मूड में देखकर, मुझे बेतरह रुलाई आने लगी। बिस्तर छोड़कर, मैं खिड़की के सामने आ खड़ी हुई। हारुन ने मुझे बिस्तर पर आने के लिए आवाज़ तक नहीं दी। मुझे आहट मिलती रही, वह खुद भी नहीं सो पा रहा था!
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