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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


घर के लोग दिन-भर मेरी खोज-खबर लेने के मेरे कमरे में आते-जाते रहते हैं, यहाँ तक कि आवारा-लोफ़र हबीब भी!

'भाभी, कुछ चाहिए?' वह आकर पूछ जाता है।

दोलन भी आकर पूछ लेती है, 'भाभी कुछ खाओगी?'

रानू भी आती है, 'भाभी, शरबत बना लाऊँ? खाना यहाँ ले आऊँ या मेज़ पर लगा दूँ?'

हसन बैसाखियों पर चलता हुआ, इस कमरे का चक्कर लगा जाता है। कमरे में आकर खिड़की के सामने बैठा-बैठा, उदास आँखों से आसमान निहारता रहता है।

काफ़ी देर-देर तक वह इसी मुद्रा में बैठा रहता है, एक भी बात नहीं करता।

एक दफ़ा जाने क्या सोचते हुए बोल पड़ा, 'सऊदी अरब का आसमान भी तो बिल्कुल यहाँ के आसमान की तरह ही है, फिर मुझे इस देश के लिए. तकलीफ क्यों हो?'

जिस दिन पहली बार उसने यह बात कही, मैंने उसे जवाब भी दिया, 'अरे! सिर्फ आकाश ही क्या देश है? इसके अलावा भी तो बहुत कुछ है।'

हसन हँस पड़ा, 'बाकी जो सब हैं, वे सब निहायत छोटे-छोटे हैं। सबसे विशाल है-आकाश!'

उसकी बातें सुनकर मुझे हँसी आ गई। हसन की ज़वाब की उम्मीद में कोई सवाल नहीं करता। इतने भीड़-भड़क्के में मैं भी पले-बढ़े होने के बावजूद, वह काफ़ी अकेला और निर्जन है। रानू से उसकी ख़ासी पटरी बैठती है। जब वह स्वस्थ था, रानू के लिए सबसे चोरी-छिपे कुछ-न-कुछ लेकर लौटता था। घर के और किसी भी बन्दे के लिए नहीं, सिर्फ़ रानू के लिए! और कुछ नहीं तो एक-दो सन्तरे था पावडर का डिब्बा। यह देखकर मुझे अच्छा लगता था। कोई, किसी को प्यार करता है, यह देखकर मुझे बेहद अच्छा लगता है!

सासजी दिन-भर बैठी-बैठी कथरी सिलाई करती रहती हैं! बच्चे की कथरी! नन्हे-नन्हे झबले भी बनाए हैं। वच्चे के झवले! हारुन थोड़े-थोड़े दिनों के अन्तराल में मुझे धानमंडी, डॉक्टर सोफ़िया मजुमदार की क्लिनिक में जाँच के लिए ले जाता है। सोफ़िया भी अक्सर आती-जाती है! पहले की तरह बहुधा न सही, फिर भी आती रहती है। उस पर पढ़ाई-लिखाई कर दबाव कुछ ज्यादा आ पड़ा है। परीक्षा भी काफ़ी नजदीक है।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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