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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

इस समय सेठजी नीचे ड्रायंग रूम में मिलने के लिए आये लोगों को विदा कर ऊपर आ गये। आते ही उन्होंने बताया, "कासगंज से प्रकाश के श्वसुर और प्रकाश के निर्वाचन पर पटीशन करने वाले ज्योतिस्वरूप आये थे और प्रकाश के विषय में बात कर रहे थे।"

"क्या कहते थे?"

''वह प्रकाश के निर्वाचन पर पटीशन न करने का दाम मांग रहे थे। दाम तो ज्योतिस्वरूप मांगते हैं और धन्नाराम बीच में मोल-तोल करा रहे हे।"

''और आपने क्या कहा है?''

"यही कि दाम तो दिया जा सकता है, परन्तु देना न देना प्रकाश के। विचार करने की बात है। जिस दिन वह मुझे कहेगा कि आपकी कृपा का प्रतिकार मुझे देना चाहिये, मैं दे दूंगा।"

''वह कितना मांगते हैं?" सेठानी ने पूछ लिया।

''ज्योति बाबू एक लाख मांग रहे हैं। मैंने कह दिया है कि प्रकाश

को मुझसे मिलना चाहिये और स्वयं यह कहना चाहिये कि कितनी राशि आपको मिलनी चाहिये? मैं उसके देने काप्रबन्ध कर दूंगा।

"अत: धन्नाराम अब प्रकाशबाबू से बात करेगे। मुझे कुछ ऐसा संदेह हो रहा है कि प्रकाश कासगंज में है और इसी कारण वह आधे घण्टे में ही बात समाप्त कर कासगंज लौट गये हैं।''

''हां; आपका अनुमान ठीक ही प्रतीत होता है। उसका एक पत्र श्रीमती को भी आया है और उसमें उसने लिखा है कि वह श्रीमती के पिता से मिलने जा रहा है।''

''तो श्रीमती ने कहा है यह?"

''उसने क्या कहना है! उसमें कुछ कहने की बुद्धि होती तो बहुत कुछ कहने को था। यह है पत्र।" चंद्रावती ने सामने रखे पत्र को उठा सेठजी को दिखा दिया।

''तब देखना चाहिये कि वह यहां आता है अथवा नहीं।" 

"वह आने का विचार नहीं रखता। तार पत्र लिखने के पीछे भेजा गया है।"

इस पर सेठजी ने गम्मीर हो पूछ लिया, "और तुम चाहती हो कि वह शोघ्रातिशीघ्र चला आये।"

''देखिए जी, मैंने विमला को इसके जन्म की बात बता दी है। और यह भी उस समाचार से परेशान प्रतीत होती है। यह इस अनिश्चित अवस्था को दूर तक चलने नहीं देना चाहती। इससे अकल्याण की आशा हो सकती है। पर यदि वह न आया तो क्या करना होगा?" "ये लोग मोटर में गये हैं। इनकी मोटर 'ऐम्बैसडर' है और मेरे पास 'शिवर्लेट' है। मैं इनके पीछे चलकर इनके साथ ही कासगंन पहुंच सकता हूँ और ज्योतिस्वरूप से अतिंम बात करने के बहाने इनकी कान्फ्रेरेंस में जा धमकता हूं। वहां जाकर प्रकाश को कान से पकड़ कर ले आऊँगा।"

"तो जाइये और उसको कहिये कि मां उसके लिए भोजन तैयार कर प्रतीक्षा कर रही है।"

विमला किसी निश्चित मन: स्थिति में पहुंचने की आशा करने लगी थी।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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