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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

श्रीमती ने कह दिया, "मैं चाय पीती ही नही। चाय पीने से मेरे पेट मे जलन होने लगती है। मैं ठण्ठा पानी और मूंग की दाल के पापड़ ही लूंगी।"

कमला उठी और कहने लगी, "मेरी अध्यापिका बहन प्रतीक्षा करती होंगी। मैं पड़ती हुई ही चाय ले लूंगी।"

''अब इस समय पढ़ने लगी हो?''

"हां। इस समय अर्थशास्त्र पढ़ती हूं और चाय बहनजी के साथ ही लूंगी।"

इतना कह वह चल दी भागीरथ को चाय कमरे में भेज दी गयी। कमला भाई के कमरे में आने से पहले सूरदास से मिल आयी थी। अब जब वह उनको अकेले बैंठा देखती थी तो कमरे में चुपचाप जा उनके चरण स्पर्श कर आया करती थी। सूरदास कमला के स्पर्श को पहचान कह दिया करता था, "कमला?''

''जी।" इतना कह वह चली आया करती थी।

एक दिन सूरदास से खुलकर ब,त हुई थी। सूरदास ने कहा था, "कमला। तुम चरण स्पर्श करती हो और मैं तुम्हें छोटी बहन समझ मन से आशीर्वाद दे देता हूँ।"  "मैंने आपसे कहा था और आप भी समझ गये थे कि मैं आपकी मेरे प्रति बहन की भावना को बदलने का यत्न कर रही हूं और आपने कहा था कि जब मैं सफल हो जाऊंगी तब आप बहन कहना छोड देगे। देखिये, आपने मुख से तो बहन कहना छोड़ दिया है। अब आप केवल कमला कहकर सम्बोधन करते हैं। अब मन की बात रह गयी है। उसे भी बदल दूंगी।"

''ठीक है। परन्तु मैं एक बात कहता हूं कि बहन तो तुम अभी भी हो। पत्नी बन सकोगी अथवा नहीं, कह नहीं सकता। मैंने अपने मन को बहुत टटोला है। मुझे इसमें कल्याण समझ नहीं आ रहा, परन्तु मैं एक बात से डरता हूँ कि तुम बहन का पद छोड़ पत्नी न बन सकने पर कहीं मेनका न बन जाओ।"

''प्रभु। उस बात को स्मरण मत कराइये। मैं उस रात अपने मन  'के भावों को समझ नहीं सकी थी।"

"बात यह है कि उस दिन से पूर्त्र तुमने मुझको कभी छुआ नहीं था। तब तक न तो तुमने कभी तिलक लगाया था और न ही चरण स्पर्श किये थे। इस कारण मैं पहचान नहीं सका कि कौन मेरे समीप आ मुझसे आलिंगन करने लगी है। मैंने जब पूछा कि वह कौन है तो वह बोल उठी कि मेनका है। मैं समझा था कि भगवान ने उसे मेरी परीक्षा लेने के लिये भेजा है। मैं उससे दूर हटने लगा तो वह प्रेम प्रकट करने लगी और यह हाड़-चाम का शरीर उस मेनका के प्रभाव में आने लगा था। मैं मेनका से परास्त होरे वाला ही था कि भगवान् ने उसके मन में प्रकाश कर दिया और वह एकाएक उठी और चल दी। उस रात मेरी अवस्था विलक्षण रही। तदुपरान्त मैं सो नहीं सका और बहुत कठिनाई से अपने को नियन्त्रण में कर सका था।

''उसके कई दिन पीछे जब तुमने तिलक-लगाया और चरण स्पर्श किये तो मुझे समझ आ गया कि यह उस रात वाली मेनका ही है। पर तुम जो बोली कि एक अज्ञात प्राणी हो तो तुम्हारी वाणी पहचान गया और तबसे मैं तुमसे भय खाने लगा है। मैं विचार करता रहता हूँ कि तुममें की मेनका पुन: प्रलोभन न बन जाये। इस कारण तुम्हारे मन को सुस्थिर करने के लिये बहन कह देता हूं।"

"मैं उस रात की घटना पर पश्चाताप कर चुकी हूँ। उसके उपरान्त मैं एक सप्ताह भर अन्न छोड़ केवल फलाहार का सेवन कर और भगवती गायत्री का जप कर विकार रहित होने का यत्न करती रही हूं। मैं अब अपने को सर्वथा स्वस्थ पाती हूं।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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