उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
''अब अपने भैया की बात ही समझ लो। मुझे तो उनका इन निर्वाचनों में कांग्रेस के टिकट पर लोक सभा में जाना एक अन्धे का अन्धकार में कूदने के अतिरिक्त कुछ समझ नहीं आ रहा।
"बहनजी! उससे तो मेरी स्थिति कम भयावह होगी।"
शीलवती को भी प्रकाशचन्द्र के लोक सभा का निर्वाचन लड़ना भला नही मग रहा था। अब कमला द्वारा इस कार्य की अन्धे को अन्धकार में छलांग लगाने से तुलना करते उसकी हंसी निकल गयी। उसने मुस्कराते हुए कहा, "कमला। तुम्हारा चक्षुविहीन व्यक्ति से विवाह क्या भैया के अन्धकार में कूदने से कम भयंकर बात है?''
''मुझे तो इसमे किसी प्रकार की भयंकरता दिखायी देती नहीं। यहां तो एक इन्द्रिय का अभाव है, परन्तु वहां इन्द्रियों की बात छोड़ पूर्ण मन, बुद्धि और आत्मा का ही अभाव दिखायी देने लगा है। भैया कह रहे थे कि बीस लाख रुपये व्यय होने का अनुमान है। इतने में तो देश भर के नेत्रविहीनों के लिये आखें मोल ली जा सकती हैं।
''इस पर भी बहन जी! अब तो प्रेम हो गया है और विवाह जैसा आप कह रही हैं, होगा ही।"
कमला ने घड़ी में समय देख पुन: कह दिया, "बहनजी! कार्यालय में जाने का समय हो गया है। मैं चाहती हूं कि आप मेरी यह बात माताजी से कह दें। मैं आपकी जीवन भर आभारी रहूँगी।"
कमला गयी तो शीलवती अपने घर जाने का विचार कर उठी, परन्तु इस समय चन्द्रावती कमरे में आयी और पूछने लगी, "तो कमला गयी?''
"हां मांजी! वह कार्यालय में है। बुलाऊं उसे?''
"नहीं। किसी प्रकार की जल्दी नहीं है। यह लड़का तो सर्वथा मूर्ख और गंवार प्रतीत होता है। मैंने इसे पांच वर्ष हुए देखा था। तब यह एक भले विचार का बुद्धिशील व्यक्ति प्रतीत होता था। अब यह पशु ही समझ में आया है।"
इस समय चन्द्रावती एक सोफा पर बैठ गयी और शीलवती जो अपने घर जाने के लिये तैयार हुई थी, पुनः बैठ पूछने लगी, "माताजी। अब यह क्या कह रहा है?"
चन्द्रावती मुस्करायी और कहने लगी, "कहता है, मेरे मुख पर देखो। यद्यपि अंग्रेज़ की भान्ति गौरवर्श नहीं तो भी पर्याप्त उज्जवल हूं। अब आप इसकी अपनी लड़की के वर्ण से तुलना करिये। आपको पता चल जायेगा कि उस कृष्ण वर्ण से कोई फोकट मे विवाह क्यों करेगा?''
मैंने पूछा ,''तुम्हारे माता-पिता इस उज्जवल खाल का क्या दाम मांगते हैं?"
''लड़की का उत्तराधिकार रह नहीं होगा और विवाह के समय मुझे सवा लाख नकद। वस्त्र, भूषण तथा अन्य साज़ो-सामान उससे पृथक।"
मेरा अगला प्रश्न था, "तुम्हारे माता-पिता भी कुछ इच्छा रखते है क्या?''
उसने कहा, "इस विषय पर बात हुई थी। उनका कहना था कि वह बहन के घर से कुछ पाने की इच्छा नहीं रखते। हां, यदि फूफाजी समझें कि कुछ देना चाहिये तो वह उनके भाग का भी मुझे ही दे सकते हैं।''
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :