उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
|
0 |
गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
नौकरानी कार्ड लिये हुए कार्यालय में चली गयी। वहां कमला बैठी एक अदायगी के विषय में मैनेजर से समझ रही थी। कलकत्ता शाखा से दस सहस्त्र रुपये की मांग आयी थी और मैनेजर समझा रहा था कि वह दस सहस्त्र रुपया किस प्रकार देना बनता है। जब कमला को समझ आ गया तो उसने पत्र पर लिख दिया कि दस सहस्त्र रुपये का ड्राफ्ट बना दिया जाये। वह इस आज्ञा के नीचे हस्ताक्षर करने वाली ही थी कि नौकरानी ने भागीरथ का कार्ड सामने कर कह दिया, "माताजी कहती हैं कि इसका नाम हिन्दी में लिख दो।"
कमला ने आज्ञा के नीचे हस्ताक्षर कर नौकरानी से कार्ड ले पढ़ा और समझ गयी। उसने पूछा, "यह महाशय कहां हैं?"
"अभी तो ड्योढ़ी पर खड़े हैं।"
कमला मुस्करायी और उसने काजल' के पीछे कार्ड पर लिखे हुए को हिन्दी में लिख दिया। उसने लिखा,"मागीरथलाल एम0 ए0, असिस्टैन्ट पोस्टल विभाग बरेली उत्तर प्रदेश।"
कार्ड नौकरानी को वापिस देते हुए कमला ने कहा, "देखो, हवेली पर खड़े बाबू को इस कार्ड के साथ ही भीतर मां के पास ले जाओ। यह मां से मिलने आये हैं।"
भागीरथ पांच-छः वर्ष के उपरान्त यहां आय था और हवेली के नौकर प्राय: बदल चुके थे। इस कारण किसी ने पहचाना नहीं। नौकरानी हवेली के द्वार पर गयी और चौकीदार से बोली, "इन बाबू को भीतर आने दो।"
इस प्रकार भागीरथ को ले जाकर चन्द्रावती के सामने खड़ा कर दिया गया। भागीरथ ने मौसी के चरण स्पर्श किये और चन्द्रावती ने उसे पहचाना तो उठ पीठ पर हाथ फेर प्यार देते हुए कहा, "भागीरथ अपना नाम चौकीदार को क्यों नहीं बताया? व्यर्थ में इतनी देर खड़ा रहना पड़ा।"
"बुआजी। कुछ हानि नही हुई। मैं तो यहां आ ही गया हूँ। अब बिना मिले जाने वाला नही था।"
चन्द्रावती ने पूछा, "सामान किधर है?''
"वह अभी ड्योढ़ी में ही रखा है।"
भागीरथ का सामान मंगवाकर एक कमरे में रखवा दिया गया और उसे स्नानादि से निवृत्त हो जाने के लिये कह दिया गया। जब वह अपने कमरे में चला गया तो चन्द्रावती ने कमला का कार्ड पीछे हिन्दी में लिखा नाम पढ़ा उसे पढ़ वह समझ गयी कि भागीरथ ने नौकरी कर ली है। इस पर वह विचार करने लगी कि वह सेठजी के काम में सहायक हो सकेगा अथवा नहीं। उसने समझा था कि असिस्टैण्ट कोई बहुत बड़ा पद होगा। जो भागीरथ ने इस प्रकार कार्डों पर छपवा रखा है।
उसने निश्चय कर लिया कि व्यवसाय में काम करने की बात तो सेठजी स्वयं ही करेंगे। वह तो उसको लड़की दिखाकर विवाह र्की चर्चा ही करेगी। वह देख रही थी कि भागीरथलाल सूरदास की तुलना मे एक सामान्य रूप-राशि का युवक है और वह इस दिशा में सूरदास की तुलना में बहुत घटिया सिद्ध होगा।
मध्याह्न भोजन का समय हो गया था और कमला कार्यालय से खाने के कमरे में जा पहुंची। वहां चन्द्रावती, शीलवती और भागीरथ पहले ही बैठे हुए थे। कमला ने भागीरथ को देखा तो हाथ जोड़ नमस्ते कर कहू दिया, "कब आये भाईसाहब?"
''बस आ ही रहा हूं।''
''चन्द्रावती ने पूछ लिया, "आपको तो आने के लिये तार भेजा गया था?"
''बुआ! मेरी नयी-नयी नौकरी लगी थी। शीघ्र छुट्टी ले नहीं सका।''
|
- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :