लोगों की राय

उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''परन्तु लड़की का पति पसन्द करेगा क्या?" प्रकाशचन्द्र ने पूछ लिया।

''उसके पसन्द करने अथवा न करने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। जैसे दो भाई पृथक-पृथक कारोबार करते हुए एक ही परिवार में रह सकते हैं वैसे ही पति-पत्नी भी पृथक-पृथक कारोबार में कार्य करते हुए भी इकट्ठे गृहस्थ जीवन चला सकेंगे।"

कौडियामल्ल ने केवल यह कहा,"यह असम्भव प्रतीत होता हैं।''

"नहीं पिताजी!" अध्यापिका ने अपनी बात समझाने के लिये कह दिया, "इसमें सम्भव-असम्भव उतना ही है जितना कि भाई-भाई के पृथक-पृथक् कारोबार करते हुए भी संयुक्त परिवार सम्भव है।'' कमला की मां ने कह दिया, "शीलवती की बात भी विचारणीय है। अभी तक लड़कियां पिता की सम्पत्ति में उत्तराधिकारी नहीं होती थी। अब हो गयी हैं। इस नयी परिस्थिति में समाज मैं पूर्व प्रचलित व्यवस्था बदलेगी। बदलनी भी चाहिये। क्या व्यवस्था हो, यही विचारणीय बात है।''

कमला ने मुख खोला, "मैं समझती हूं कि पिताजी के कारोबार में मैं सहयोग दूं तो पीछे उनकी सम्पत्ति का भाग लेने में मुझे पाप नहीं लगेगा।"

''ओह!" प्रकाश के मुख से निकल गया, "पर कमला, इसमें पाप-पुण्य कहा से आ गया?"

जो कुछ भी बिना परिश्रम के प्राप्त हो वह पाप की कमाई ही मानी जानी चाहिये।"

कमला की मां चन्द्रावती ने कह दिया, "तो क्या हम स्त्रियां, जो घर बैठी भूषण, वस्त्र, मिठाई, फल, गद्दे, पतंग का उपभोग करती हैं, पाप कमा रही हैं?"

''यह बात नहीं माँ! आप पिताजी के परिवार की सेवा करती हैं, अत: आपको पिताजी की सम्पत्ति से सब प्रकार की सुख-सुविधा मिलती है। लड़की को सेवा करनी पड़ती है पति के परिवार की और सम्पत्ति का उत्तराधिकार मिल गया है पिता से।

''इस कारण अध्यापिका बहनजी का कहना है कि इस कानून के बन जाने से लड़की को पिता के घर की सेवा करनी चाहिये।"

सूरदास दूध पी चुका था। वह सब बात सुन और समझ रहा था। उसने कह दिया, "कमला बहन की बात ठीक नहीं। लड़की

पिता के घर की सेवा कर ही नहीं सकती।''

उत्तर शीलवती ने दिया, "राम भैया! इसी अव्यवस्था को दूर करनें के लिये ही तो कह रही हूँ। अब प्रकाश दादा देश का काम करेंगे और कगला को कारोबार में डाल दिया जाये।"

कौड़ियामल्ल ने उठते हुए कहा, "यह बात इस प्रकार निश्चय नही हो सकती।"

अन्य लोग भी उठ खड़े हुए। प्रकाशचन्द्र ने कह दिया, "राम भैया। अब सात-आठ दिन तो नित्य यहीं कथा-कीर्तन में लोगों को स्मरण कराते रहो कि मैं लोक सभा के लिये खड़ा हो रहा हूँ। जब तक टिकट नहीं मिल जाता तब तक विधिवत् काम आरम्भ नहीं कर सकता।"

सूरदास ने पूछा, "भैया! बिना टिकट के खड़े नहीं हो सकते?" 

''हो सकता हूँ। स्वतन्त्र रूप से खड़ा होना पड़ेगा। इस प्रकार खड़े होने से सफल होने में कठिनाई बहुत बढ़ जाती है। विरले ही स्वतन्त्र प्रत्याशी सफल होते हैं।"

''तो कांग्रेस के अतिरिक्त अन्य कोई दल नहीं?"

''हैं तो, परन्तु उनका प्रभाव कम है। महात्मा गांधी और जवाहरलाल जी के कारण इस दल को चार चांद लगे हुए हैं।"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book