उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
तारकेश्वरी ने वह चित्र राम को देते हुए कहा, "राम। अब भी विचार कर लो। चित्रकार ने चित्र में उसको वास्तव से कुछ अच्छा ही दिखाया है।''
''मां! मेरा विचार अभी भी वही है। मैं उसकी निर्मल, उज्जवल आत्मा को देख चुका हूँ।''
"तुम मेरी आत्मा को भी देखते हो?" प्रियवदना ने पूछा।
''हां बहन! पहले से तुमने कुछ तपस्या अवश्य की है, परन्तु कमला तो कई जन्मों की तपस्या का फल है।''
प्रियवदना राम की बात सुन रूठ कर बाहर चली गयी।
राम और तारकेश्वरी दोनों उसका मुख देखती रह गये। राम ने कहा, "मां! बहन के मन में अभी भी बहुत कुछ गदला है, अन्यथा वह जानती हुई कि मैं भाई हूँ, मुझसे विवाह की इच्छा न करती।''
तारकेश्वरी ने ठण्डा सांस लिया और चुप कर रही। हवाई जहाज की तैयारी की घोषणा हुई। तो तारकेश्वरी इत्यादि उठ जहाज की ओर जाने लगे। धनवती की दृष्टि बुकिंग आफ़िस की ओर गयी तो
उसे प्रियवदना आती दिखायी दी। उसने कहा, "बहन जी! प्रियम् आ रही है।"
तीनों रुके और जब प्रियवदना समीप आ गयी तो तारकेश्वरी ने कहा, "देखो हमारे जहाज चलने की घोषणा हो गयी है।"
"मैं भी आपके साथ चल रही हूं।"
''किसलिये?"
''राम भैया का विवाह देखने।"
"ओह! और दुकान?"
''भैया के विवाह के उपलक्ष में बन्द रहेगी।"
''यह क्या हुआ है?'' तारकेश्वरी ने पूछा।
''बता नहीं सकती। मैंने दुकान पर टेलीफ़ोन कर दिया है कि दुकान एक सप्ताह के लिये राम भैया के विवाह के उपलक्ष में बन्द रहेगी।"
मार्ग में राम ने कह दिया,"मां! यह बाहर के देखने वाले चक्षु तो बहुत ग़लत बात बताते हैं। मुझे तो ऐसा समझ में आया है कि यह अन्धों का संसार अन्धकार में ठोकरें खा रहा है।''
जब कमला को तारकेश्वरी ने बताया कि उसका विवाह होगा तो वह भागी घर को। यह शुभ समाचार अपनी मॉ को बताने के लिये, परन्तु उसे मिल गयी शीलवती।
वह उसकी बांह पकड कर अपने कमरे में ले गयी और अध्यापिका को कस कर आलिंगन कर बोली, "बहन जी!........ बहन जी! ..... बहन जी!।......। आगे वह कह नहीं सकी।
शीलवती हंस पड़ी और बोली, "तो राम भैया को आंखों से देखते हुए देख आयी हो?"
''हां..... और......... और।"
"और क्या? कुछ बताओ भी तो?''
''उनकी माता जी मेरे माता को बुला रही हैं।"
''किसलिये?"
"कह दो, बहन जी। कुछ बात है जो मेरे मुख से निकलती नहीं।"
* * *
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :